पुनीत श्रीवास्तव

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पुनीत श्रीवास्तव

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पुरानी फ़ोटो

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बचपन की एक फोटो मिली तब की जब हाफ पैंट और बुशर्ट पहनी जाती थी पापा, दो बुआ बड़की अम्मा बड़का बाउजी बड़का फूफा बाराबंकी वाले और डब्लू भईया कमसिन सेहोगी ८८  ८९ के आस पास की, जब कैमरा में रील भराई जाती थी ३२ ३४ फोटो आते थे किसने खिंची याद नहीं, छत पर की है छत पर हमारे एक कमरा था, जिसका दरवाज़ा भी कटरेन का ही था, वो कमरा स्टोर की तरह थाछत पर कमरे से एंटीना नही लगा है, यकीनन ८८ ८९ के आसपास की ही फोटो है बगल के पकड़ी का पेड़ दिखता है, पीछे गोल्डी भाई का मकान भी, घनश्याम जी का घर भीतब घर से घर दिखते थे

अब नही दिखतेरास्तों की मदद लेनी पड़ती हैउस समय का सोचने पर सब बड़ा साफ साफ दिखता हैअब सोचना पड़ता है यहाँ ये था आज तो ये है

सबसे ख़ास हमारे घर की छत की वो दीवार, जिस पर गोलियां चट से लग के दूर तक जाती थी अगर पक्के ईंट पर लगी तो ही छोटा सा छत ,अनगिनत

यादें

आंखे तकती ऊपर उड़ती पतंगों के कटने की आस वाली दोपहर में स्कूल से लौट के बासी चावल मिर्चे के अचार से सने चावल को खाने वाली

गर्मियों में उसी छत पर सोने की चद्दर बिछा के, सिन्नी के नए पंखे के उद्घाटन पर नीचे से बिजली का एक्सटेंशन लगा के पंखा चला के सो जाने पर

एक पुरानी तस्वीर कितना कुछ कह जाती है, बस एक पुरानी तस्वीर !


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