परदेसी होली
परदेसी होली
वैसे तो आज होली का दिन था, लेकिन मेरा मन किसी भी काम में नहीं लग रहा था। बस, घर की याद आए जा रही थी कि कैसे सुबह से ही घर के सभी लोग होली की तैयारियों में जुट जाते थे। जहांँ एक तरफ मांँ और चाची किचन में गुझिया और कचौरी बनाते वहीं दूसरी तरफ भाई रंगों से भरी बाल्टी लेकर सभी को रंगने को तैयार रहता, लेकिन यहांँ तो होली का कोई नामो निशान नहीं था।
मेरा मुरझाया चेहरा देखकर पतिदेव जी मेरे पास आए और मेरा हाथ थामकर बोले
"आज होली के दिन तुम उदास क्यों हो?"
अपना हाथ पतिदेव के हाथों से छुड़ाते हुए मैं बोली
"परदेस में कैसा रंग और कैसी होली।"
वो मुस्कुराते हुए बोले
"तो यह बात है। मैं तुम्हें पांँच मिनट देता हूँ तुम जल्दी से तैयार हो जाओ।"
हम दोनों तैयार होकर गाड़ी से चल दिए। थोड़ी देर बाद मैंने देखा हमारी गाड़ी मंदिर के पास रुकी और वहांँ बहुत से भारतवंशी रंगों के साथ होली खेल रहे थे। जब मैंने मंदिर में प्रवेश किया तो देखा मंदिर के रसोईघर में गुझिया और कचौरी भी बन रही थी। सबसे पहले हम लोगो ने भगवान जी के दर्शन किए और प्रसाद लिया। उसके बाद मैं लाल रंग पतिदेव के गोरे गालों पर लगाकर बोली
"हैप्पी परदेसी होली"