मूंगफली
मूंगफली
अब देखिए यादों का भी क्या है? जब आती हैं तो मन न जाने कहाँ कहाँ भटकने लगता है। करीब बीस साल पहले की घटना होगी। जाड़ों के मौसम में रात के खाने के बाद पूरा परिवार मिलकर रजाइयों में घुस कर मूंगफली खाता था और टेलीविजन देखता था। मैं और छोटी बहन अक्सर इस बात पर झगड़ पड़ते कि मुझे कम और इसे ज्यादा मूंगफली मिली है। एकदिन तो झगड़ा इतना बढ़ गया कि मैंने बोल दिया 'मैं मिनी को एक दाना भी मूंगफली का ज्यादा नहीं दे सकता। पापा हँसे थे कि ' अब हमारे घर में मूंगफली को लेकर महाभारत होगी।'
समय अपनी रफ़्तार से चलता रहा, लेकिन हमारा मूंगफली को लेकर झगड़ा बरकरार रहा। हालांकि बाद में मैं पढ़ने के लिए बाहर चला गया और ऐसे मौके कम ही आये।
फिर मिनी की शादी तय हो गई, सब कुछ अच्छे से हो गया, लेकिन जब मिनी विदा होकर अपने ससुराल चली तो अंदर ही अंदर कुछ टूटता सा लगा और लगा कि जैसे मेरा ही एक हिस्सा मुझसे अलग हो रहा है। तभी न जाने कहाँ से ये मूंगफली का किस्सा याद आ गया।
आज सुबह सुबह ही मैं पहुंच गया मिनी की ससुराल और साथ ले गया मूंगफली की एक बोरी। मिनी की सास ने देखा तो बोलीं 'अरे बेटा ये क्या है?' मैं बोला कुछ नहीं लेकिन पर्दे के पीछे से मिनी की मुस्कान जैसे सब बोल रही थी।