मुखाग्नि
मुखाग्नि
सभी शमशान घाट के लिए चल पड़े थे । स्त्रियों का एक झुंड सबसे पीछे चल रहा था ।अर्थी को कंधा दिए सेवक राम के बेटे और भतीजे । थोड़ी थोड़ी देर बाद कन्धा बदल लेते । वैसे तो सेवक राम अब शुगर और लिवर की बीमारी से हड्डियों की मूठ बनकर रह गया था,ज्यादा वजन नही रहा था उसका,पहले भी ठीक ठाक ही था । स्टोव,गैस या कोई बत्ती वाला चूल्हा जिसमे कैरोसिन पड़ता है,को रिपेयर करने की अच्छी खासी और पुरानी दुकान थी सेवक राम की । उसका बाप पहले यही काम करता था । लोग उसे भैरों कहते,शायद इसकी वजह उसका रंग काला होना रही होगी । बाप के साथ काम करते करते सेवक ने भी ये काम सीख लिया था । पढ़ने लिखने में ठीक ठाक था सेवक राम । पर उसका मन खेल में लगता । कबड्डी का खिलाड़ी था,पर घर की गरीबी और काम काज ने उसे बांधे रखा ।
वैसे उनका पुश्तैनी काम था मुर्दे की क्रिया रस्म करवाना ।
आपने देखा ही होगा कि जब कोई हिन्दू धर्म में मरता है तो श्मशान के बाहर एक ऊंचे पत्थर के चबूतरे या स्थान पर पहले शव को रखा जाता है । वहां एक आदमी मरने वाले के पुत्र से जो क्रिया करवाता है,मतलब शव के चारों ओर पानी भरे घड़े का चक्कर लगवाकर उसे पटकवाना । साबुत माह आदि की दाल के लड्डू आदि बना कर रखना,फिर दाह संस्कार के लिए मुर्दे को लकड़ी वगैरह में लगवाना,और चिता लगवाना आदि । मुर्दे के ऊपर जो चादर वगैरह चढ़ाई जाती है या कोई पैसा आदि चढ़ाकर लोग अंतिम प्रणाम आदि करते हैं ,उसके हकदार भी यही होते हैं । जिन्हें गांव में चार्ज या अचार्य कहते हैं । तो सेवक राम का पुशतैनी काम मुर्दे की रस्म करवाकर जो मिलता,उससे ही अपनी गुजर बसर करना था ।
"पहले पहल इन्हें कोई गांव में नही बसने देता था । गांव के बाहर ही रहते थे ये लोग । खुशी या शादी के अवसर पर भी इन्हें बुलाने से हर कोई परहेज करता । गांव में कोई मरता तो इनके घरों में खुशी छा जाती । मृत्यु ही इनके लिए उत्सव थी,शायद उत्सव रोजगार,धन और संपदा से ही जुड़े होते हैं ।" शव यात्रा में जाते कुछ पुराने बुजुर्ग बात कर रहे थे ।
"समय समय की बात है भाई,अब देखो सबके घर मे चूल्हा भैरों और सेवक से ठीक होकर चलता है । अब तो घर भी गांव के बीचों बीच है । ये सेवक का लड़का लड़की दोनों अच्छी नौकरी कर रहे हैं । " एक और बुजुर्ग बोले ।
"हां ,इसीलिए तो मुर्दे की क्रिया का काम अब सेवक भतीजे के साथ मिलके करता था । भतीजा पढ़ने लिखने में फिसड्डी निकला, दारू भी पीता है,पर जब मुर्दे की दाह क्रिया करनी हो तो सबको सेवक और उसके भतीजे की याद आती हैं ।'" एक आदमी ने अपनी बात रखी ।
"पर चाचा ये बताओ,अगर सेवक का भतीजा भी नौकरी लग जाता या पढ़ जाता तो सेवक के बाद ये कसम कौन करता ?" एक प्रश्न उछला ।
"अरे अब कहाँ वो बातें रही । अब तो सब रलगड्ड हो गया है । अब कोई भी काम जाति से बंधा नही है । जिसे जहां दो पैसे का रोजगार मिल रहा है,वही काम करने को तैयार है । नाई, मिस्त्री,दर्जी,बढई जो काम गईं लो अब पुशतैनी नही रहे । सब मे कम्पेटिशन भारी है । रोजगार का वैसे ही बुरा हाल है । अब जिसे जहां जो काम मिल रहा है,उसी को तैयार हैं ।" ये जवाब जैसे भूमंडलीकरण के सिद्धांत की हामी भर रहा था ।
शव यात्रा श्मशान पहुंची तो रिश्तेदार और सगे सबंधी सेवक राम की अर्थी को रस्म क्रिया के बाद चिता पर रखने में लग गए । गांव के लोग आस पास बने सीमेंट के बेंचो पर बैठ गए । स्त्रियां जो इस शव यात्रा के सबसे आखिर में चल रही थी, वे भी थोड़ा दूर एक तरफ बैठ कर विलाप करने लगी ।
"आदमी मेहनती था,मंदिर के भंडारे में खूब बढ़ चढ़ कर सेवा करता था,धार्मिक यात्राओं में गांव कमेटी की तरफ से जहां लंगर लगाया जाता,वहाँ सेवक की पक्की ड्यूटी थी । " एक आदमी ने सेवक को श्रद्धांजलि दी हो जैसे ।
"हां, आदमी मेहनती था,बस शराब ले डूबी । जवानी में मैंने इसे देखा है कबड्डी खेलते । गोरा रंग,हीरो जैसी शक्ल,बिल्कुल अपनी मां पर गया था । अब देखो जैसे शराब इसे लील गई थी । लीवर खराब हो गया था,डॉक्टर ने शराब पूरी तरह बंद करने के लिए कहाँ, पर माना नही । जबसे इसका बेटा नौकरी में आया है,तबसे ज्यादा पीने लगा था । एक दिन तो इसने ऐसी बात कही की मैं हैरान रह गया ।"
"अच्छा क्या बात कही?"
"कहने लगा कि मेरे बाप दादा और मैं इज्जत की जिंदगी न जी पाए,पर अब देखो ,समय बदल रहा है । बिटिया भी अच्छी नौकरी पा गई है । उसने आइलेट्स का टेस्ट क्लियर कर लिया है । विदेश जा सकती है,इसलिए बड़े घरों से रिश्ते आ रहे हैं,क्योकि उनके लड़के पढ़ाई में निकम्मे है पर पैसे के दम पर बाहर जमसने के लिए आइलेट्स पास बहु की जरूरत है । मैंने भी एक रिश्ते के लिए हामी भर दी । सारा पैसा टी लड़के वाले ही खर्च करेंगे । मेरा लड़का भी विदेश घूम आएगा । सबसे बड़ी बात कि जिस जिल्लत और शर्म में मेरे बाप दादा उलझे रहे,अब वो काम मेरे बच्चों को नही करना पड़ेगा । आगे की सारी पीढ़ी इस दुष्चक्र से बाहर हो गई । इसलिए मैं खुशी में पिता हूँ, जितनी देर चाहे जिऊँ पर अब मन बहुत तसल्ली में हैं । डॉक्टर इसे क्या समझेगा ।"
"हम्म ,बात तय भी उसकी सही ही थी । अब देखो लड़का लड़की दोनों का रिश्ता अच्छे परिवार में हो गया था,जाति बन्धन रहित । सब माया और प्रतिष्ठा का खेल है ।"
"अरे ये सब शहरों के चोंचले हैं,वहां न किसी की जात न धर्म,सब पैसा देखते है,न कोई वंश देखे न परिवार । माया महाठगिनी है भाई ।यहां गांव देहात में अभी भी लाज शर्म है।" एक बुजुर्ग जैसे अभी भी अपडेट नही था । सब कुछ कहाँ बदला करता है । वैसे सब कुछ बदलने की जरूरत ही क्या है ।
"अजी अब क्या गांव और क्या शहर,अभी हफ्ता पहले दो अंतर्जातीय विवाह अपने ही गांव में हुए है ।कही रोजगार की मजबूरी रही और कही रिश्ता न मिलने की । समय वाकई बदल रहा है ये मानना पड़ेगा,कहने को चाहे कुछ भी कहते रहें । " जैसे किसी ने बात को सिरे से नकार दिया हो ।
सेवक राम की चिता को बेटे ने आग लगाई । बेटा एक तरफ अपने पिता की जलती हुई चिता को देखकर गुमसुम उदास खड़ा था । उसने अपने पिता का वो त्याग और प्रेम देखा था जिसके चलते आज वो जो कुछ भी था,उसी की बदौलत था ।
थोड़ी देर बाद जब चिता की आग से शव के पैर झड़ गए तो सेवक के बेटे से कपाल क्रिया करवाई गई । सेवक के बेटे ने जलती चिता में शव के कपाल को एक लंबे बांस से धीरे से छूआ और बांस चिता के ऊपर से दोसरी तरफ फेंक दिया ।
शव यात्रा में आये सभी लोगों ने श्मशान की जमीन पर बिखरे पेड़ों के तिनके ढूंढ कर उठा लिए और उन्हें तोड़ मरोड़ कर जलती चिता में फेंक दिया । फिर हाथ जोड़कर शमशान में लगे पैनी के नलों की तरफ बढ़ गए । कुछ ने सेवक के बेटे के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे हौंसला दिया ।
पानी से मुंह हाथ धो और कुल्ला कर के सब एक पेड़ के नीचे इक्कट्ठे हो गए ।
"सेवक राम जी की की इस अंतिम यात्रा में शामिल हुए सभी गांव वासियों के धन्यवाद । भाइयों सेवक राम जी के अस्थि फूलों को कल सुबह आठ बजे एकत्रित किया जाएगा । सभी सुबह सेवक राम जी के निवास पर आठ बजे पहुंचे । वही से यहां श्मशान घाट के लिए निकलेगें । एक बार फिर सबका धन्यवाद ।" सेवक राम के एक रिश्तेदार ने सब को अगले दिन का प्रोग्राम बताया ।
शाम ढल रही थी । सभी लोग गांव की तरफ लौटने लगे ।