minni mishra

Children Stories Tragedy Inspirational

3.0  

minni mishra

Children Stories Tragedy Inspirational

मैं लक्ष्मी नहीं दुर्गा हूँ

मैं लक्ष्मी नहीं दुर्गा हूँ

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“मुझे सब पता है, अपनी पीड़ा छुपाने के लिए तुम इस तरह घुटनों में मुँह छिपाकर बैठी हो । तुम्हारी पल-पल की वेदना का भान है मुझे । मैं गर्भ में जितनी सुरक्षित हूँ, दुनिया में उतनी महफूज नहीं रह पाऊँगी ! यही सोच-सोचकर तुम व्यथित हो रही हो..न.... माँ ? बताओ माँ ...?

प्रसव कक्ष के बेड पर बैठी शकुंतला के पेट में हलचल मच गयी। उसने अपने गर्भ को सहलाते हुए कहा,

“हाँ... यह मानसिक पीड़ा, प्रसव पीड़ा से भी बहुत अधिक टीस दे रही है मुझे ! दुनिया बहुत जालिम है, गिद्ध की नजरों से कोई लड़की अछूती नहीं रह पाती ! उसी गिद्ध ने मुझ कुंवारी को एक दिन अपना शिकार बनाया था ! उसके घिनौने हाथों ने मेरे जिस्म को नोचा-खंसोटा...! लेकिन, मैं लाचार, बुत बन सब देखती, सहती रही ! उस दरिंदे को कुछ न कर सकी ! इसलिए मेरा अवसाद ग्रस्त मन, बिना अपराध किये अपराध बोध से आज भी जकड़ा हुआ है ! लेकिन गर्भ में तुझे होने का जैसे ही मुझे पता चला, तुमसे बेहद प्यार हो गया।

मैं तुम्हारे वजूद की कल्पना में सदैव डूबी रही। लोक लाज त्याग कर मैंने तुम्हें गर्भ में सुरक्षित रखा और नौ महीनों तक वीरता की कहानी सुनाती रही। ताकि तुम वीरांगना की तरह उन दरिंदों को मुँह तोड़ जवाब दे सको ..जब कभी कोई तुम पर गिद्ध दृष्टि डालेगा ।

सुनो, इसलिए मैंने तुम्हारा नाम .. 'दुर्गा' सोचा है ! दस भुजाओं वाली दुर्गा ....... आह .....आउच....ओह........आ.....आऽऽऽऽऽऽऽह....।"

माँ की प्रसव वेदना एकाएक तेज हो गई ।

तभी ....

” वाॅ.आ...ऊं.. ....वाॅआ... ।” मध्य रात्रि में नवजात के रोने की आवाज प्रसव कक्ष में गूँज उठी ।

“लक्ष्मी आयी है... ।” नर्स ने मुझे जननी की गोद में देकर हँसते हुए कहा ।

“लक्ष्मी...हाहाहाहा ... । इसलिए तो लोग ललचायी नजरों से बेटी जात को जन्मते ही घूरने लगते हैं ! मैं लक्ष्मी... नईईईई......मैं अपनी माँ की दुर्गा हूँ..।” मैं जोर जोर से शोर मचाने लगी, मतलब क्रंदन करने लगी।

“ वाह बेटी ! तुम रुई के फाओं से भी नर्म हो !"

गोद में मुझे लेते ही माँ पुलकित हो गई और झट अपने स्तन से लगाया..। उनके स्तन से बूंद-बूंद कर रिस रहे गाढ़े पीले दूध, अमृत समान मेरे ओठों से कंठ तक आ पहुँचा । मैं अपनी मिचमिचाते नयनों से माँ के चेहरे को पढ़ने लगी। और वो तृप्त भाव से अपलक मुझे निहार रही थीं । मानो कह रही थीं , “बेटी, तुम्हें देख कर आज मैं अवसाद रूपी जकड़न से आजाद हो गई। "

“हाँ....माँ ! मैं... तुम्हारी दुर्गा हूँ। वही दस भुजाओं वाली वीरांगना। ” नवजात का चेहरा अरुणोदय की लालिमा की तरह दैदीप्यमान खिल रहा था। जिसे देख संघर्ष से थकी-हारी माँ की आँखें अब झपकने लगीं।


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