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Amit Singhal "Aseemit"

Children Stories Drama Children

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Amit Singhal "Aseemit"

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माला के बिखरे मोती (भाग ९५)

माला के बिखरे मोती (भाग ९५)

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इमरान: ठीक है साहब। मैं अभिलेख बाबा के बाल अभी छोटे कर देता हूं। लेकिन अभिलेख बाबा कुछ खुश से नहीं लग रहे हैं! आप इनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ इनको बाल कटवाने लाए हैं शायद!


धनंजय: हाँ, तूने ठीक पहचाना है इमरान। तेरे अभिलेख बाबा के सिर पर धन दौलत की गर्मी चढ़ गई है। उसको ठंडा करने के लिए ही इनके बाल छोटे करवा रहा हूं।


इमरान: जी ठीक है। जैसा आप कहें साहब।


अभिलेख: पापा, मैं आपका कहना मानकर अपने बाल छोटे तो करवा रहा हूं। लेकिन अब आपको भी मेरी बात माननी होगी। आपको मुझे नया स्मार्टफ़ोन दिलवाना होगा।


धनंजय (गुस्से में): बिल्कुल नहीं! तुम्हें नया स्मार्टफ़ोन बिल्कुल नहीं मिलेगा। तुमने यहाँ भी नए स्मार्टफ़ोन दिलवाने की रट लगानी शुरू कर दी है। बाल छोटे करवाने के बदले नया स्मार्टफ़ोन दिलवाने की कोई शर्त नहीं थी और न होगी। अब तो हर महीने तुम्हारी हेयर कटिंग होगी और तुम्हें नया स्मार्टफ़ोन मिलेगा इंटरमीडिएट पूरा करने के बाद। बस...बात ख़त्म!


     यह सुनकर अभिलेख सहमकर चुप हो गया है। लेकिन इमरान और इरफ़ान ने धनंजय और अभिलेख की सारी बातें बहुत ध्यान से सुन ली हैं।


     ख़ैर, बाल कटवाने के बाद धनंजय और अभिलेख अपने घर वापस आ गए हैं। घर के सभी सदस्य अभिलेख की नई हेयर स्टाइल देखकर बहुत खुश हो रहे हैं और अभिलेख के मन को तसल्ली देने के लिए उसकी ख़ूब तारीफ़ कर रहे हैं। अब धनंजय और अभिलेख फ़्रेश होने के लिए वॉशरूम चले गए हैं। 


      घर के बाक़ी सदस्य भी फ़्रेश हो रहे हैं। थोड़ी देर के बाद सब सदस्य डाइनिंग टेबल पर नाश्ते के लिए आकर बैठ गए हैं। डाइनिंग टेबल पर अब धनंजय थोड़ी नरमी अपनाते हुए अभिलेख से बोला,


     "देखो अभिलेख बेटा, हम लोग तुम्हारे दुश्मन नहीं हैं। हम जो भी कहते हैं और जो भी करते हैं, वह सिर्फ़ तुम्हारी भलाई के लिए ही होता है। अब तुमने अपने बाल छोटे करवा लिए हैं, तो देखो तुम कितने प्यारे दिख रहे हो! अब तुम्हें पढ़ाई के साथ साथ अपनी सेहत का भी ध्यान रखना होगा। अब से तुम रोज़ शाम को दो घंटों के लिए घर के पास वाले पब्लिक पार्क में जाया करोगे। वहाँ तरह तरह के झूले तो हैं ही, साथ में वहाँ बहुत सारे बच्चे जाकर कई तरह के आउटडोर गेम्स खेलते हैं। अब से तुम उन बच्चों से दोस्ती करोगे और उनके साथ पब्लिक पार्क में आउटडोर गेम्स खेला करोगे। इससे तुम्हारे कई फ़ायदे होंगे। पहला फ़ायदा, स्कूल के अलावा थोड़ी देर के लिए घर से बाहर जाओगे। फिर कई लोगों से मिलोगे और उनसे बात भी करोगे। इससे तुम्हारे अंदर आत्मविश्वास पैदा होगा। दूसरा फ़ायदा, पार्क में आउटडोर गेम्स खेलने से तुम्हारी सेहत अच्छी हो जाएगी। तीसरा फ़ायदा, तुम्हारा मनोरंजन भी बढ़िया और स्वस्थ तरीक़े से हो जाया करेगा। चौथा फ़ायदा, तुम्हें कुछ न कुछ नया सीखने को मिलेगा। पाँचवां फ़ायदा, पार्क में तरह तरह के पेड़ों और रंग बिरंगे फूलों के पौधों के बीच कुछ देर समय बिताओगे तो ख़ुद को प्रकृति के क़रीब महसूस कर पाओगे। छठा फ़ायदा, फ़्री की ताज़ी हवा का आनंद ले पाओगे।


यश: वाह धनंजय बेटा, तुमने कितनी बढ़िया बात कही है। सचमुच मज़ा आ गया है। 


धनंजय: थैंक यू पापा।


जय (अभिलेख से): बेटा, तुम्हारे पापा बहुत ज़रूरी बात तुम्हें समझा रहे हैं। बहुत ध्यान से सुनो और इस पर आज शाम से ही अमल करना शुरू करो।


अभिलेख: जी ताऊजी।


धनंजय (अभिलेख से): देखो बेटा, अगर तुम दिन भर में केवल दो घंटे पार्क में बिताओगे तो तुम देखना, तुम्हारी लाइफ़ बदल जाएगी। हाँ, कभी कभी घर में रहकर टीवी पर मूवीज़ देखने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन टीवी और स्मार्टफ़ोन का गुलाम बन जाना अच्छी बात नहीं है। ये सब थोड़ी देर के मनोरंजन के साधन होने चाहिए। इनको जीवन बिताने का ज़रिया मत बनाओ।


अभिलेख: जी पापा। मैं आपकी बात अच्छी तरह समझ गया हूं। मैं आज शाम से पास वाले पब्लिक पार्क में जाना शुरू करूंगा। थैंक यू पापा।


धनंजय: यह हुई न मेरे अच्छे बेटे वाली बात! चलो, अब जल्दी से नाश्ता ख़त्म करो। फिर उसके बाद थोड़ी सी पढ़ाई करना। उसके बाद जो तुम्हारा मन करे, वही करना। बस शाम को पार्क जाना मत भूलना।


अभिलेख: बिल्कुल नहीं भूलूंगा पापा।


     अब सभी सदस्यों का नाश्ता ख़त्म हो गया है। अब सभी लोग अपनी रविवार की छुट्टी का अपने अपने तरीक़े से आनंद लेने के लिए अपने अपने कमरे में चले गए हैं। क्योंकि आज किसी भी सदस्य का घर से बाहर जाने का अभी तक तो कोई प्लान नहीं है। 


      अब शाम हो गई है। तो घर के सभी सदस्य डाइनिंग हॉल में इकट्ठा हुए हैं। ये सब लोग डाइनिंग हॉल में इकट्ठे ऐसे ही बिना किसी कारण के नहीं हुए हैं। आज शाम की चाय के साथ घर में बने हुए समोसों का आनंद लेने की योजना है। साथ में कुछ मज़ेदार इनडोर गेम्स खेलने का मन बनाया गया है। यह सब योजना किसी और ने नहीं , बल्कि घर की सभी बहुओं और दोनों बेटियों ने बनाई है।


     अब सभी सदस्यों के लिए डाइनिंग टेबल पर घर के सेवकों द्वारा चाय और समोसे पेश किए गए हैं। फिर सभी लोग मस्ती मज़ाक करते हुए चाय सामोसों का आनंद ले रहे हैं। क़रीब आधे घंटे के बाद अभिलेख ईशा से बोला,


     "मम्मा, अब शाम हो गई है। मैं पार्क में खेलने जाऊं?"


     ईशा ने अभिलेख के इस सवाल का जवाब देने से पहले धनंजय की आँखों में देखा है। धनंजय ने अपनी आँखों और होठों की मुस्कान से ही ईशा को अपना जवाब दे दिया है।


ईशा (अभिलेख से): ठीक है बेटा, तुम पार्क में ख़ूब एंजॉय करके आओ। लेकिन देखो, ज़्यादा देर मत करना। अंधेरा होने से पहले घर वापस आ जाना।


अभिलेख: ओके मम्मा। आप चिंता मत करिए। मैं जल्दी वापस आ जाऊंगा।


     यह कहकर अभिलेख तो पार्क में खेलने चला गया है और घर के बाक़ी सदस्य अब चाय समोसे ख़त्म कर चुके हैं। अब काया अपनी कुर्सी से खड़ी हुई है और काया ने कुछ बोलना शुरू किया है।


काया (मस्ती भरे अंदाज़ में): देवियों और सज्जनों...नमस्कार। आज पूरा ठाकुर परिवार यहाँ चाय और घर के बने हुए समोसों का मज़ा लेने के लिए इकट्ठा हुआ है। लेकिन बात यहीं ख़त्म नहीं होती है! (क्रमशः)


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