क्या मेला, क्या त्योहार

क्या मेला, क्या त्योहार

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"पापा चारों ओर कितने सुंदर सुंदर फूल खिले हुए हैं और तो और मेला भी लगा हुआ है, आप हम सबको एक दिन वहां क्यों नहीं ले जाते", लता ने बड़े मनुहार से अपने पिता रामू से कहा।


और रामू बेचारा अपनी चार साल की छोटी सी बिटिया को क्या समझाता कि यही दिन तो उनकी कमाई के हैं जिससे पूरा साल भर उनके घर का चूल्हा जल सकेगा। गरीब के लिए क्या मेला क्या त्योहार? बस इन सब के बहाने उसकी जेब कुछ दिन संभली रहती है और रात को भूखे पेट नहीं सोना पड़ता।


हर बार की तरह अपनी बिटिया को एक गुब्बारे और टॉफी लाने का लालच देकर रामू अपना ठेला लेकर निकल गया।


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