Navneet Gupta

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क्या इस बार का पनपा बैराग्य भी शमशान बैराग्य साबित होगा?

क्या इस बार का पनपा बैराग्य भी शमशान बैराग्य साबित होगा?

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आने वाला कल

.... जाने वाला है, हो सके तो!


तो लौक डाउन का तीसरा चरण - अपने अपने रेलवे प्रणाली के तीनों सिग्नल रंगों में मानव संवर्गों को भी तीनों रंगों की सीमा सुरक्षा प्रतिबंधों के साथ मई ४ से चलेगा, और इसका ग्रहण काल अभी मई १७ तक बता कर ढाँढस में रखा गया है, हम सब को। हम-आप जानते है, हम सबको पता है, हमारे कोरोना के अभी इस संक्रमण काल, या कहूँ ग्रहण काल को कहाँ तक बढ़ायेंगे। रैड ब्रादरी वाले इलाक़ों के बन्दों को तो पता है, जून तक भी निजात नहीं मिलने वाली, क्यूँ कि हम महसूसते हैं, वो या उनकी परिस्थितियाँ / मन: स्थिति में ऐहतियातों की स्वीकार्यता नहीं बन पा रही है, शायद वो विश्व में इस विषाणु फैलाव को करोड़ीमल वाली फ़िगर में देखना चाह रहे हैं, यानी १०-२० लाख की हमारी आत्महुतियां!

चलो ये तो कठोर स्वरूप और संभावनायें हो सकती हैं, २०२० के इस दौर की। संवेदनशीलता के साथ इस कठिन/कठोर दौर को किस तरह निपटता देखेंगे, बीतता समय कैसे हस्ताक्षर लेखन करता है, अपने काल लेख पर।.... चलिये हल्के पक्षों की बात करते हैं...

:ज्ञान विज्ञान शोधार्थियों की टीमें अपने अपने देशों में लगीं हैं, कुछ काट प्रस्तुति के लिये( काश अब एक ही वैश्विक नेता हो जाये, चूँकि अब दुश्मन बड़ा निराला सा अकेला एक ही है)

: सारे के सारे देशों की व्यवस्थाओं के अंग प्रशासनिक, पुलिस ( आवश्यकता पड़ने पर सेनायें भी) चिकित्सा क्षेत्रों के लोग खुद को बचाये, संक्रमण में आये लोगों की शिनाख्तगी और उपचार के दुरूह काम में व्यस्त हो गये है, फैलाव को रोकना और उनका उपचार कर मौत से बचाने की कोशिशों में यथासंम्भव लगे हैं, 

: हम जैसे लोग इसकी भयावहता के लौजिक को समझते, एडवाइज़री को सरन्डर्ड हैं, लेकिन कुछ जगह थोड़ा, सच कहें तो शायद पूरा दारोमदार उन्हीं पर निर्भर है, वो छोटे/घने पैकेट में रोज़ी रोटी के संकट काल में हैं, यद्यपि संस्थायें इस पक्ष को देख रहीं हैं।

: आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन की यथोचित सीमाओं में हम अग्रसर हो कर आत्मसात करने लगे है. हम हम न रहे तुम तुम न रहे। पुरुष झाड़ू पोछा कर रहे हैं, तो पत्नियाँ उनकी हेयर ड्रैसर बन गयी हैं, बस वो जिस रूप में पति को चाहती है, कटिंग कट वैसे ही कर रहीं हैं, मेरे बड़े बाल उसकी पुष्टि कर रहे हैं।घर पर ही शुद्ध खाने पीने की वैरायटी चांट पकोड़े भोज बन रहे हैं।

: अति आवश्यक कामों, सुविधाओं के साथ हम जीने के आदी हो गये हैं, सभी के दैनिक जीवन चक्र तदनुकूल सैट हो गये हैं। लौक डाउन के प्रथम सोपान पर कुछ बैचेनी दीख रही थी, कुशलक्षेम, वार्तालापों के कौल वीडियो कौल चले थे, तीसरे चरण तक सबने ख़ुशनुमा माहौल में जीना सीख लिया है, तनुख्वाह आ ही रही है। वातावरण भी प्रदूषण से दूर हो गया है, देवप्रयाग के दो रंगे संगम को देखिये।बर्थडे , शादी जैसे अनेक कार्य ज़ूम पर होने लगे हैं, हम लोग अपने अपने शौकों पठन पाठन गायन नृत्य लेखन आदि में गुज़ारने लगे हैं। कुछ नहीं तो यारों दोस्तों बच्चों से लम्बी फोनों पर बात करके।मीडिया से छुटकारा ज़रूर नहीं मिला है, वो चाहे प्रिन्ट हो या डिजिटल__ भारतीय राजनीति में वो अलग स्वतन्त्रता का वर्चस्व रखती है। 

: ये बरस २०२० में तो, मौल, होटल,पर्यटन, काल, हवाई सफ़र , सिनेमा जगत और उससे जुड़े लोगों पर शनि की दशा में चलने वाले हैं, हर विदेसवा वाले चाहे वो अन्तर्राष्ट्रीय या अन्तर्राज्यीय सेवा में था, अपने ही जन्म भूमि क्षेत्रों काम करने को बाध्य होंगे, कम ज़्यादा-कमाई की सोच को बदलकर।समय गवाह रहा है, कैसे किस तरह वो अपने घर पहुँचे हैं बीते दिनों।

: आपके व्यावहारिक खर्चे बिल्कुल निम्नतम पर आ गये हैं, महँगाई घटेगी, रोड रिस्क घटेगें, लेकिन सरकारों का सारा बजट अनप्रोडक्टिव इस कोरोना वायरस से अपने नागरिकों पर बचाने पर खर्च होकर रहेगा, इसलिये वत्स, सरकारों पर फ़िलहाल डी ए , ऐरीयर, भत्तों के अस्थायी रोकों पर विचलित ना करें, ये समय और विषाणु आतंक की अनिश्चितता को देखते कठिन है, सब से अच्छे नेतृत्व की अपेक्षा की जा सकती है।

: ये बंधा-बंधा सा समय जो कमसकम एक साल तो हो ही सकता है, तब तक धैर्य का परिचय देना है , दिमाग़ी बोझों को लादे।

: कोरोना बचावों के प्रति प्रतिबद्ध रहते मानसिक, शारीरिक बातों का ध्यान रखते टीवी-बीबी-बच्चे- साथ रह रहे मित्र के साथ रहना है। उन्हीं को ओढ़ना है, उन्हीं को बिछाना है, उनसे बिगाड़ने की कदाचित् नहीं ही सोचना, वैसे तो कोरोना से मृत्यु भय इन सब बारदातों पर लगाम कसे हैचूंकि आज पढोसी पढोसी नही रहा/बचा है, अपना पड़ोसी धर्म निभाने। उधर ज़िम्मेदार अपनों को कोरोना प्रतिबंध रोक रहें है. अभी रिशी कपूर की मौत में उसकी बेटी ही नहीं पहुँच सकी स्थानीय करीना ज़रूर रही। आम जन की क्या सोचें।

: चल रहा काल आज कठिन और लम्बा हो सकता है, लेकिन आने वाला कल (किस तारीख़ से पता नहीं) एक बार फिर क्या वैसा ही दिन दिखाने वाला है.. जैसे मेरे साथ मार्च २१, २०२० को टैंगा,गुवाहाटी और लखनऊ में था?

: इस खेल मंथन और उत्पत्तियों से हम कुछ बदलेंगे या नहीं, मैं बहुत उम्मीद नहीं रखता , उसका कारण भी है, मानवता के नेतृत्व में अभिमानी, भौतिकवादी लोगों का आधिपत्य। वो आदमी को निम्नतम आवश्यकताओं में नहीं जीना देना चाहेंगे- विश्व की इतनी बड़ी आबादी जो है। 

: उनको औरों से बेहतर और सम्पन्न जीने की चाह अभी भी ख़त्म नहीं होती दिखतीं, कोई बौद्धिक डकैतियाँ डालेगा, कोई किसी और तरह खुद को ऊपर रखने की चेष्टाओं को बनाये रखेगा।

: बस थोड़ा सा फ़र्क़ है इस त्रासदी काल में, इस बार का शमशान बैराग्य क्षणिक ना होकर दिनों का ज़रूर हुआ है।

लेकिन वो भी, शायद क्षणिक ही साबित होगा।

.... तो देखते हैं, आने वाले कल को।

-मेरे डेढ दो साल से, पर्यटन के कारण अनुपयोगी पड़े गमलों में कड़वी सी लगने वाली मैथी अंकुरित होने लगी है।


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