क्या आप मेरी बेटी को निभा देंगे

क्या आप मेरी बेटी को निभा देंगे

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"संगीता, सारी तैयारियाँ अच्छे से हो गई ना? लड़के वाले बस एक घंटे में पहुंच जाएंगे। और तुम्हारी लाडली मीता भी तैयार हो गई ना साड़ी पहनकर जो मैंने निकाल कर रखी थी उसके लिए? ऐसा ना हो माँ बेटी मिलकर मेरी नाक कटवा दो।" लगभग चिल्लाते हुए अनिमेष ने अपनी पत्नी संगीता को कहा।

"हां, हो गई सब तैयारियाँ। सब ठीक से हो जाएगा, आप चिंता ना करो।" संगीता ने कहा।

"हुंह, आज तक कुछ ठीक से किया हो तुमने तो ये कहती तुम कुछ अच्छी लगो।" अनिमेष मुंह बनाते हुए बोला।

हमेशा की तरह पानी भर आया संगीता की आँखों में कड़वे बोल सुनकर और हमेशा की तरह ही वो उन आँसुओं को पी गई।


कोई नई बात नहीं थी। जबसे शादी हुई थी तबसे कड़वे बोल ही उसकी किस्मत में लिखे थे। सास, ननद और अनिमेष मिलकर उसके हर काम में कमियाँ निकालते थे। कभी किसी को कोई कमी दिख जाती कभी दूसरे को। और अगर नहीं मिलती तो उसके मायके वालों की कमियाँ निकालने लग जाते।

शुरू में तो बहुत लड़ाईयाँ भी हुई। उसने सब का विरोध भी किया लेकिन अपनी बेटी मीता के होने के बाद वो शांत रहने लगी थी। नहीं चाहती थी कि उस पर इन बातों का दुष्प्रभाव पड़े। वो बाकी सब को तो नहीं रोक सकती थी पर उसने अपनी बेटी के लिए सब्र रख लिया। ऐसे ही आँखों में आए पानी को पी लिया करती थी वो।


हालांकि उसकी बेटी मीता बहुत कोशिश करती थी कि उसकी माँ अपने हक के लिए लड़े पर संगीता ने एक बार जब चुप्पी साधी फिर वो शायद ही कभी किसी से लड़ी। और अब तो सास के गुज़र जाने के बाद और ननद की शादी के बाद सिर्फ अनिमेष ही थे जो कड़वा ज़हर उगलते थे जिसकी उसे आदत हो गई थी।


लड़के वाले भी पहुंच गए। लड़के की माँ विभा, उसके पिताजी और बहन भी आए थे। उन सब के हाव भाव से लग रहा था कि उन्हें मीता पसंद आ गई है। चाय नाश्ते के बाद सब ने मीता से सवाल जवाब शुरू कर दिए। विभा ने मीता से उसकी पढ़ाई, आगे सर्विस करनी है या नहीं, खाना बनाना आता है या नहीं आदि सब पूछने के बाद पूछा - "हमारे परिवार में आकर सब को अपना पाओगी या नहीं। सब की इज्ज़त, सब को प्यार दे पाओगी?"

अनिमेष ने झट से बोला, " क्यों नहीं सब करेगी। अच्छे संस्कार दिए हैं मैंने इसे "

अभी विभा कुछ आगे बोल पाती उस से पहले ही संगीता बोलने लगी, " हां, मेरी बेटी सब को निभा देगी। सब का ख्याल रख लेगी। सब को इज्ज़त और प्यार भी दे देगी। लेकिन मुझे ये पूछना है कि क्या आप सब मिल कर मेरी बेटी को निभा देंगे?"


अनिमेष गुस्से में चिल्ला कर बोला, " चुप रहो संगीता। क्या बात कर रही हो तुम?"

संगीता ने बोला, " नहीं मैं आज चुप नहीं रहूँगी। मेरी बेटी की ज़िन्दगी का सवाल है। आप को मेरी बात का जवाब देना पड़ेगा। क्या आप मेरी बेटी को निभा दोगे? क्या आप उसको प्यार और इज्ज़त दोगे जिसकी एक बहू सच्चे अर्थों में अधिकारी होती है? क्या उसकी छोटी मोटी भूलों को माफ़ कर पाओगे? बेटी ना सही क्या बहू बना कर अच्छे से रख पाओगे?"


संगीता को पता था कि उसकी बातें शायद लड़के वालों को पसंद नहीं आएँगी लेकिन वो अपनी बेटी को अपने जैसी ज़िन्दगी जीने देना नहीं चाहती थी। जो वो अपने लिए नहीं बोल सकी थी, आज एक माँ बनकर अपनी बेटी के लिए बोल रही थी। हो सकता है कि लड़के वाले ना कर जाएं पर उसके मन को ये तसल्ली तो रहेगी कि जब भी मीता की शादी होगी वो अपनी तरफ से उसके लिए ऐसा घर ढूंढेगी जहां बहू की इज्ज़त होती हो, उसे आदर - सम्मान और प्यार दिया जाए चाहे उसे ऐसा घर - वर मिलने में समय लग जाए और इसके लिए अगर उसे हर रोज़ अनिमेष से लड़ना पड़ेगा तो वो भी चलेगा। एक माँ के आगे अनिमेष को हारना ही पड़ेगा।


मुझे नहीं पता कि संगीता की तलाश पूरी होगी की नहीं। बड़ा मुश्किल होता है ऐसा घर मिल पाना। लेकिन मेरी सभी बेटियों के लिए सिर्फ एक ही प्रार्थना है कि भगवान उन्हें ऐसा ही घर - वर दे जहां उन्हें मान सम्मान और प्यार मिले। 



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