vartika agrawal

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4.5  

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कल्पवृक्ष

कल्पवृक्ष

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यूं तो कल्पवृक्ष का नाम आप सब ने सुना होगा ।हाँ वही वृक्ष जो स्वर्ग में है इस कहानी का नाम भी कल्पवृक्ष है, इसलिए नहीं कि ये कहानी ..स्वर्ग की कहानी है ,परी कथा है बल्कि इसलिए है कि इस वृक्ष ने कितनों को जीवन दिया है ,जीने के प्रति रवैए को बदला है ,त्याग ,समर्पण एकाग्रचित्त होने जैसे कितने भावों को जन्म दिया है इसलिए।


  समय के पन्नों में न जाने कितनी ही कहानियां दबी पड़ी है ,न जाने कितनी ही गुत्थियां उलझी पड़ी है ,जो परत् दर परत् समय के प्रभाव से और दबता जा रहा है ।जी हाँ मैं समय हूँ ।मैं कल भी था आज भी हूँ कल भी रहूँगा।मुझमें न जाने कितनी ही कहानियां है ,कुछ आधी -अधूरी तो कुछ पूरी ,।यूं तो आधा कुछ भी नहीं होता बस उनकी समय अवधि कम होती है ।उसे दुनिया अधूरी कहानी का नाम दे देती है ।

 आज मैं आपको वह कहानी सुनाने जा रहा हूं जिसका पन्ना पहले से ही मेरे समक्ष खुला हुआ है,वो पन्ना ही चाह रहा है आज एक बार मुझे पढ़कर मुझे अमरता प्रदान कर दो ..मुक्त कर दो ।

  हमारे एक एक शब्द जो हम बोलते हैं वह निरंतर ऊपर जा रहे हैं और कहीं ना कहीं सदैव के लिए अपना स्थान ग्रहण कर रहे हैं।

  बहुत समय पहले की बात है कि शहर के भीड़ से बहुत दूर ..वहां ..जहां झरनों का ऊपर पहाड़ी से नीचे तक स्पष्ट सुनाई देता था ।इतना स्पष्ट की अगर हवा भी इस झरने पर अपना पर भी मारे तो कोई बता दे हवा किधर की चल रही है। चारों तरफ ऊँची ऊँची पहाड़िया ,बीच में ..झरने का पानी ..अपनी जगह बनाता ..निरंतर बढ़ता हुआ ।मछलियां ज्यादातर छोटी-छोटी ।जल की शीतलता का आनंद लेते हुए ।वहीं पहाड़ियों में एक चित्त को हर लेने वाला वृक्ष था ।इसी वृक्ष पर लव बर्ड का एक जोड़ा रहता था ।ये लव बर्ड दिखने में जितने ही खूबसूरत थे उतनी ही खूबसूरत उनकी प्रेम कहानी थी ।दोनों की प्यास वो स्वयं थे ।वो एक दूसरे से ज्यादा दूर जा ही न पाते थे। दोनों संग ही जाते ,संग ही आते उस वृक्ष को जहाँ उनका ठिकाना था। ऐसा लगता था वो वृक्ष जैसे कि दरबार हो उनका। उनके वहाँ आते ही वह वृक्ष भी उनसा ही चहक उठता ,महक उठता ।

ये लव बर्ड चमत्कारी ही तो थे ,जिस तरफ से उड़ जाए ऐसा लगता फिजा़ओ में प्रेम की खुशबू बिखर गई,जिस टूटते बिखरते (भावनाओं से) घर की छत पर बैठ जाए,उस घर मे नयी आशा जगा दे। सच बहुत ही अद्भुत था यह जोड़ा ।स्वर्ग के दो परिंदे मानो ईश्वर का ही संदेश ले यहाँ उतरे हो। प्रेम स्नेह ही का संदेश तो यहाँँ की मिट्टी से महकाना चाह रहे।


 उनकी पँखों की आवाज़ उस घाटी में उनके पहुँँचने व दिखने से पहले ही आने लगती। सम्पूर्पण प्रकृति पहाड़ी वृक्ष झरनें पंछी आसमा अपलक इस दृश्य को हृदय मे उतारने हेतु देखते रहते ।


समय पँख लगा तेजी से उड़ रहा था कुछ समय के पश्चात् इस जोड़े ने एक बच्चे को जन्म दिया ।

 समय हर किसी के लिए बराबर है उसने हर किसी से बराबर का व्यवहार किया है ।

  एक दिन अचानक एक शिकारी उनकी घाटी पहुँँच गया।वह इस ख़ूबसूरत लवबर्ड के जोड़े को इस वृक्ष पर देख संग ले जाने का विचार करने लगा ।


विचार के कौन्धते ही उसने बिजली की तरह बहुत ही फूर्ति से तीर उन पर चला दिया ।यह दृश्य उनका बच्चा देख रहा था ,उसके पास इतना भी समय ना था कि वह माँ पापा को कुछ बता सके ।कुछ कर गुजरने का ही वक्त था ।वह उस तीर के बीच मे आ गया और ज़मीन पर गिर फड़फड़ाने लगा ।संपूर्ण प्रकृति यह दृश्य देख रही थी ।सूर्यास्त का समय था।चमत्कार हमेशा ही अविश्वसनीय ही होता है ।जहाँ विज्ञान कुछ नहीं कर पाता ,वहाँ चमत्कार बहुत कुछ कर दिखाता है ।

 अचानक से ही चीटियों का एक बहुत बड़ा झुंड जो उस वृक्ष के समीप था ।उस शिकारी पर आक्रमण कर दिया ।शिकारी का न तो तीर काम आया और ना ही जाल उसने निकल भागने मे ही भलाई समझी।

 उस मासूम से बच्चे के माँ पापा रोते सुबकते हुए अपने बच्चे के समीप पहुँँचे और कहने लगे ,क्या जरूरत थी कि तीर के बीच में आओ। इस पर बच्चे ने कहा," माँ अगर तुम्हें या पापा को तीर लगती तो हमारा क्या होता ..हम भी तो मर जाते ।मेरे जाने से ..मैंने तुम दोनों को ही बचाया है। तुम पापा के बिना नहीं रह सकती और पापा तुम्हारे बिना नहीं ।वादा करो तुम अपना ध्यान रखोगे ,रोगे नहीं। मैं वापस आऊँँगा अतिशीघ्र।


समय की अपनी गति है ।अब कुछ वर्ष बीत चुके हैं।उस लवबर्ड का बच्चा मानव देह प्राप्त कर चुका है, और वह लवबर्ड जो कभी स्वर्ग सी सुंदर घाटी में रहा करते थे अब वहाँ से जा चुके हैं ।जिस भवन में इस बच्चे ने जन्म लिया था यह किस्मत का खेल ही कहेंगे कि वह जोड़े भी उसी भवन के ही उद्यान में रह रहे थे ।किसे.पता था यहां भी होनी ही बलवान है ।यह बच्चा स्वभाव से खोया खोया रहने वाला था ।जैसे कि उसका कुछ खो गया है ।तलाश रहा हो ।किंतु न जाने क्या ।उसकी भवन के कक्ष से जिसमें वह रहता था उनकी खिड़कियों से वह वृक्ष जिस पर वो परिंदे रहते थे एकदम सामने ही दिखता था और सिद्घार्थ घंटों उसको देखा करता था।वो वृक्ष और परिंदे दोनों ही उसे बहुत पसंद थे ।कल्पवृक्ष नाम सिद्धार्थ के स्वयं का दिया हुआ नाम था ।उसे लड़ाई .झगड़ा ..झूठ ..स्वार्थपरता इन सभी बातों से ही घृणा थी ।अतः सभी से दूरी बनाकर ही रहता था ।हाँँ यह जरूर था कि उसे टूटते घर कभी ना पसंद थें ।वह पूरा प्रयास करता था कि अगर वह उन्हें बचा सकता है तो जरूर बचाएगा। ऐसा करने पर उसे आत्मिक शांति भी मिलती थी।


वह जब जब इस जोड़े को उस वृक्ष पर देखता उसके अंदर उत्साह का संचार हो जाता ।

अचानक एक दिन संध्या के समय सिद्धार्थ को बिजली कड़कने और बादलों के गरजने की आवाज सुनाई दी ।उसको तब उन पंछियों का ख्याल आ गया ।वह झट अपने कक्ष की खिड़की से उस वृक्ष को देखने लगा। उसने देखा परिंदे वहां नहीं बल्कि उसकी खिड़की से ही सट कर दुबक कर बैठे हैं। उसने अपने कक्ष की खिड़की तुरंत खोल दी व एक छोटी सी संदूक में जिसमे सूक्ष्म सूक्ष्म छिद्र थे उसमें उन्हें शरण दी। 

   बारिश थमने का नाम ना ले रही थी । उसने अगले दिन उनके लिए पिंजरा मँगवाया अपने कक्ष में ही रखा ।अब वह परिंदे वृक्ष पर ना हो कर ..उसकी आँँखों के ठीक सामने होते थे उसी के कक्ष में ।अभी भी बारिश रुकने का नाम ना ले रही थी।न जाने कैसी बारिश थी।किसी बिछड़े के पुनर्मिलन की प्रसन्नता ज़ाहिर बारिश आँसू बहाकर कर रही थी या फिर कुछ अनहोनी ..होनी थी..?

  इस बारिश में सिद्धार्थ का बहुत कुछ भीग गया था ।उसका मन भावों में गोते खा रहा था। वो जब इन परिंदों की आँँखों में देखता उसे ऐसा लगता कि ये उनके अपने है ।सिद्धार्थ पुरे मन से उनका ख्याल रख रहा था ।तीन-चार दिन में सिद्धार्थ को उनकी पसंद.. नापसंद. खेलना .बातें करना समझ आने लगा था ।वह उन्हें बहुत प्यार देना चाहता था और दे भी रहा था ।शायद अब वह परिंदे भी उसे खोजने लगे थे ।इस तरह से दस दिन निकल गए। 


अब बादल खुलने लगा था ।दिनकर अपने सुनहरे प्रकाश से सब तरफ सुनहरी आभा बिखेर रहा था ।सिद्धार्थ ने इन दिनों ..इन पंछियों के जोड़े से जो प्रेम और स्नेह पाया था..उसकी अभिव्यक्ति अवर्णनीय थी। यह दस दिन का साथ उसको आत्मिक आनंद दे रहा था ।किंतु अपने स्वार्थ के लिए वह जोड़ो को कैद नहीं करना चाहता था। उनके आनंद में ही सिद्धार्थ का आनंद था।उसने पिंजरे को अपने कक्ष की खिड़की के पास ले जाकर खोल दिया।


ये परिंदे तुरंत तो नहीं उड़े वो सिद्धार्थ को देख रहे थे ।सिद्धार्थ में उन्हें अपनी फूल सी कोमल पँखुड़ियों वाले कोमल ..नाजुक हथेलियों से सहलाया और कहा मैं तुम लोगों के साथ बिताए हुए ये दस दिन जीवन- पर्यंत नहीं भूलूंगा और कठिन से कठिन परिस्थिति मे भी एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ते ,हिम्मत रखते हैं,यही सीखाया।धैर्य से किया गया कोई भी कार्य सफल होता है ये तुमने सिखाया। मैं तुम्हारा संदेश वाहक बनूंगा और यही मैं इस कलियुगी दुनिया में भी बताऊँँगा ।


 ऐसा लग रहा था जैसे लवबर्ड इसी दिन की प्रतीक्षा कई वर्षो से कर रहे थे ।जब सिद्धार्थ उन्हें समझ पाएगा। अब वह जोड़े वहाँ उस खिड़की से उड़ गए ..दूर बहुत दूर ..और सिद्धार्थ उन्हें देखता रहा (अपने हाथों को हिला अलविदा कहते हुए)जब तक कि वह आँँखों से ओझल ना हो गए।


प्रेम करने वाला परिंदा हूँ.. मेरे पर सरहदें नहीं देखते।



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