कहानी मां के बचपन की
कहानी मां के बचपन की


आज रिया ने ज़िद ठान ली थी अपनी मां सरिता देवी से कि आप हमें अपना बचपन बताएं मां आप लोग कैसे रहते थे अपने बचपन में ...
और सरिता बैठ गई अपनी बेटी रिया को अपने बचपन की कहानी सुनाने...
हमारे समय में हमारी मां साझा परिवार की जिम्मेदारियों में व्यस्त रहती थी उस समय पूरा परिवार एक साथ रहता था और एक परिवार में कम से कम 10 -15 सदस्य हुआ करते थे।
चाचा चाची बुआ दादी दादा जी के साथ कब हंसते खेलते बचपन बीत गया पता ही नहीं चला।
शाम के समय सभी लोग अपने घरों से बाहर निकल कर सारे दिन की घटनाओं को एक दूसरे के साथ बांटते थे हंसी ठहाका से गूंज उठता था पूरा माहौल । दादी की प्रेरक कहानियां सुन सुनकर मन में देशभक्ति और समाज के प्रति कर्तव्य की भावना जागृत हो जाती थी। टीवी और मोबाइल की दुनिया से कोसों दूर था हमारा बचपन।
स्कूल से आते ही सखियों के साथ खेलना कूदना जिसमें तरह-तरह के खेल कबड्डी, खो-खो, रस्सी कूद अटठाचिया ,नौ गोटी और भी न जाने कितने खेल हुआ करते थे।
गर्मी के मौसम में छतों पर बिस्तर और लाइट का प्रबंध कर दिया जाता और हम सब बच्चे आपस में मिलकर छत पर खूब मस्ती करते और आसमान में नवग्रह तारामंडल ढूंढते। टूटते हुए तारों को देखकर तरह-तरह की मन्नतें मांगते और जब गर्मी में हवा नहीं चलती थी तो ऐसा अंधविश्वास था कि नौ कानें लोगों की गिनती करने से हवा चलने लगती है तो ढूंढ ढूंढ कर जो एक आँख से कानें लोग होते थे उनकी गिनती करते थे सच में खूब मजा आता था ।
पढ़ाई भी इतनी कठिन नहीं होती थी सारा होमवर्क स्कूल में ही लगभग पूरा कर लिया जाता।
अपनी मां की बचपन की कहानी सुनकर तो प्रिया खुशी से झूम उठी।
कहानी सुनाते सुनाते सुनीता भी यह सोचने पर विवश हो गई कि......
पर आज एकल परिवार हो गए हैं बच्चों की परवरिश भी बहुत कठिन हों गई ।
सारी जिम्मेदारी बच्चे की मां के ऊपर ही आ गई और आधे से ज्यादा वक्त तो बच्चे टीवी और मोबाइल में ही लगे रहते हैं।
स्कूली शिक्षा भी इतनी कठिन हो गई है कि बच्चे पढ़ाई के अलावा खेल कूद के लिए वक्त नहीं दे पाते इसकी वजह से बचपन से ही उनको कितनी तरह की बीमारियां घर करने लगी हैं।
काश हम सभी कुछ ऐसा कर पाते कि अपने बच्चों को भी अपने जैसा बचपन दे पाते।