" कछुआ और खरगोश "
" कछुआ और खरगोश "
दोस्तों पंचतंत्र की एक और कहानी लेकर आया हूं। एक बार एक कछुए और खरगोश में इस बात को लेकर शर्त लगती है कि दोनों में ज्यादा तेज कौन भाग सकता है। खरगोश तो यह सुनकर हंसने लग जाता है। वह कछुए से कहता है कि सभी जानते हैं मैं ही सबसे ज्यादा फुर्तीला हूं। तुम मुझसे दौड़ में कभी नहीं जीत पाओगे। लेकिन कछुआ कहता है वह तो दौड़ के बाद ही पता चलेगा।
कछुआ और खरगोश दोनों दौड़ लगाना शुरु करते हैं। खरगोश उछल उछल कर बहुत आगे तक निकल आता है। काफी दूर आ जाने के बाद खरगोश बहुत थक जाता है वह सोचता है कछुआ तो अभी बहुत दूर होगा क्यों ना मैं थोड़ी देर आराम कर लूं और फिर उठ कर फिर से दौड़ लगाकर कछुए को हरा दूंगा।
खरगोश की यह बात एक बंदर सुन लेता है वह बंदर उस कछुए का बहुत पक्का दोस्त होता है। इस बंदर को एक बार शिकारी पकड़कर जब ले जा रहा होता है तो यह कछुआ ही उसकी जान बचाता है। तब से कछुए और बंदर की पक्की दोस्ती हो जाती है।
बंदर मन ही मन सोचता है कि आज मुझे अपने दोस्त के काम आने का इतना अच्छा मौका मिला है इसे मैं अपने हाथ से नहीं जाने दूंगा।
वह तुरंत पेड़ों की डालियों को पकड़कर, फांद कर भागा भागा कछुए के पास आता है। उसे सारी बात बताता है। फिर उससे कहता है तुम बिल्कुल मत घबराओ। अब तुम मेरे ऊपर चढ़ जाओ मैं तुम्हें लेकर दौड़ लगाऊंगा।
फिर वह कछुए को लेकर भागता हुआ जाता है। वहां खरगोश सोया हुआ होता है। वह उससे भी दूर उस कछुए को ले आता है और फिर छुप जाता है। कछुआ नीचे उतर कर धीरे-धीरे फिर से चलने लगता है।
तभी खरगोश की नींद खुलती है तो देखता है कि कछुआ काफी आगे निकल गया है। वह फिर से भागा भागा आता है लेकिन तब तक कछुआ दौड़ जीत चुका होता है।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा बिना किसी स्वार्थ के सब की मदद करनी चाहिए।