बच्चे मन के सच्चे
बच्चे मन के सच्चे
आज घर से ऑफिस जाते समय एक दृश्य देखा। एक महिला अपनी बच्ची को लेकर ड्राइव कर रही थी। जो उस महिला ने किया उसे देख कर ऐसा लगा कि जरूर उस नन्ही बच्ची के मन में कुछ सवाल उमड़े होंगे। उसी पर एक छोटी सी कहानी लिखी है।
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हर रोज की तरह राधिका अपनी 4 साल की बेटी प्रिया को स्कूल से लेकर घर आ रही थी। यह उसका नियम था वह घर से निकलते समय गाय की रोटी लेती और गाय को रोटी देकर प्रिया को लेने जाती।
लेकिन उस दिन संयोगवश व रोटी देना भूल गई तो उसने सोचा लौटते समय रोटी गाय को दे देगी। आगे से उसे गाय का एक झुंड आता हुआ दिखाई दिया।
प्रिया पीछे ही बैठी थी राधिका ने गाड़ी थोड़ी धीमी की और गाय के सामने रोटी को फेंक दिया, स्पीड देकर आगे बढ़ गई!
पीछे बैठी प्रिया ने मम्मी को कस के पकड़ लिया और बोली मम्मा आप तो कहते हैं कि काऊ मम्मा होती है? हां बेटा गाय माँ होती है, मम्मा होती है। प्रिया ने फिर पूछा आप तो कहते हैं गाय गॉड है। हां बेटा गाय में ही सारे भगवान होते हैं। काउ भी गॉड है।
इसके बाद प्रिया ने जो कहा वह सुनकर राधिका के पांव के नीचे की जमीन खिसक गई।
प्रिया बोली फिर आपने भगवान के सामने रोटी क्यों फेंकी। हमें नीचे उतर कर भगवान को रोटी खिलानी चाहिए ना??
अब वह इन शब्दों को सुनकर सोचने लग गई कि बच्चे जो देखते हैं वही सीखते हैं। जाने अनजाने में हम कुछ ऐसा कर बैठते हैं कि हमें खुद को पता नहीं होता है कि उसका बच्चों के मन पर क्या प्रभाव पड़ेगा!
वह प्रिया को ऐसे भी नहीं बोल सकती थी कि हमें स्कूल जाने के लिए देरी हो रही थी इसलिए मैंने ऐसा किया क्योंकि वह प्रिया को लेकर लौट रही थी।
मौके की नज़ाकत को समझते हुए उसने प्रिया को सॉरी बोला और कहा आगे से मैं इस बात का ध्यान रखूंगी बेटा। नन्ही गुड़िया खुश हो गई। पीछे बैठी बैठी अपनी कविता गुनगुनाने लगी...
( काल्पनिक कथा )