जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये
जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये
मैंने दिल से कहा ढूँढ लाना ख़ुशी . . . . . . . . . . . . . ...
मैं ही नहीं अक्सर हम सभी यही करते हैं ,ख़ुशी बाहर ढूंढते रहते हैं। कई बार हम सुःख और ख़ुशी में अंतर नहीं कर पाते हैं । कभी सोचते हैं कि अगर मेरे पास भी गाड़ी होती तो मैं खुश हो जाती। कभी यह सोचते हैं कि मेरे पति मुझसे अच्छे से बात कर लेते या मेरा अच्छे से ध्यान रखते तो मैं खुश हो जाती। कुल मिलाकर हमारी ख़ुशी दूसरों पर निर्भर हो जाती है ,जबकि ख़ुशी कहीं बाहर नहीं ,किसी दूसरे पर नहीं बल्कि हमारे भीतर ही है ;हम पर निर्भर है।
तुलसीदास ने भी रामचरितमानस में खुश रहने का मन्त्र दिया है ,"जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये।" जिसका भावार्थ यही है कि जो जैसा है उसे वैसा ही स्वीकार लेंगे तो आनंदित रहेंगे अन्यथा हमेशा उद्विग्न ही बने रहेंगे ।
बस परिस्थितयों ,व्यक्तियों और वस्तुओं के प्रति अपना स्वयं का नज़रिया भर बदलने की ज़रूरत है और शायद हम अपनी ख़ुशी पा जाएँ ;हमें उसे ढूंढने कहीं न जाना पड़े।
ऋचा ने आज फिर एक मोटिवेशनल स्पीकर को सुना। लेकिन आज उसने शिद्दत से उसकी बातों पर सोच -विचार किया।
"केवल सुनने से नहीं ,इन बातों को अपनाने से ही कुछ होगा। मुझे अपनी ख़ुशी खुद ही तलाश करनी होगी।दूसरे लोगों को दोष देना बंद करना होगा। ",ऋचा ने अपने आप से कहा और बिस्तर पर जाकर शान्तनु की बगल में लेट गयी।
अगली सुबह ऋचा के लिए एक नयी सुबह थी। वह प्रतिदिन से 30 मिनट्स पहले उठ गयी और उठकर उसने आज की एक और ख़ूबसूरत सुबह के लिए ईश्वर को धन्यवाद दिया तथा अपने आप से इसे और ख़ूबसूरत बनाने का वादा किया।
छत पर पंछियों की चहचहाट के बीच उसने प्राणायाम और कुछ आसान किये ,मजे की बात उसे सुकून और शांति महसूस हुई। आज उसने सोच लिया था कि वह किसी भी व्यक्ति के किसी भी व्यवहार पर नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं देगी,बल्कि शांति और प्यार से उन्हें अपनी बात समझाने की कोशिश करेगी।
शांतनु ने उठने के बाद अपना बिस्तर नहीं समेटा था ,लेकिन आज ऋचा ने आराम से बिस्तर समेटते हुए कहा ,"पता है शान्तनु ,अगर हम अपना बिस्तर समेटते हैं तो काफी अच्छा महसूस होता है। बिस्तर समेटना एक बहुत छोटा सा काम है ,लेकिन सुबह -सुबह कुछ भी करना एक बड़ी उपलब्धि लगता है और पूरा दिन हमें कुछ न कुछ करने के लिए प्रेरित करता है। "
ऋचा हैरान थी ,शान्तनु ने आज कुछ नहीं कहा। हलकी सी मुस्कान के साथ कहा ,"समझ गया यार ,लेकिन अच्छी आदत डालने में समय तो लगेगा न। "
ऑफिस के लिए जाते हुए रास्ते में ट्रैफिक जाम देखकर जब शान्तनु चिड़चिड़ा रहा था ,तब ऋचा ने कहा ,"शान्तनु हम ऑफिस जाते हुए ;दोनों मिलकर अपना फ़ेवरेट म्यूजिक एल्बम सुन सकते हैं। घर पर तो साथ बैठकर संगीत सुनने का मौका नहीं मिलता और कल से 10 मिनट पहले निकलेंगे तो ऑफिस के लिए लेट होने की टेंशन भी नहीं। "
ट्रैफिक को देखकर रोज़ भुनभुनाने वाली ऋचा की बातें सुनकर शान्तनु हैरान था और ऋचा का सुझाव उसे पसंद भी आया। "आज बहुत अच्छे मूड में हो। क्या हुआ ?",शान्तनु ने पूछा।
"कुछ नहीं ,आज थोड़ा जल्दी जाग गयी थी तो आसन और प्राणायाम किया बस। ", ऋचा ने मन ही मन 'अपनी ख़ुशी अपने अंदर ही है' यह सोचते हुए कहा।
ऑफिस में भी अपने कनिष्ठ के देर से आने पर ऋचा ने गुस्सा नहीं किया ;सिर्फ इतना कहा ,"समय पर आओगे तो ,वक़्त पर घर वापिस जाकर अपने परिवार के साथ समय व्यतीत कर सकोगे। "
कनिष्ठ भी बिना कोई बहाना बनाये इतना कहकर चला गया ,"जी ,मैडम ;आगे से समय पर आऊँगा। "
ऋचा प्रसन्न मन से घर लौट आयी थी। उसने अपनी ख़ुशी अपने अंदर ही जो ढूंढ ली थी।