Devendra Tripathi

Others

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Devendra Tripathi

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हलवाहा

हलवाहा

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ये कहानी लगभग २० साल पुरानी होगी, जब गावों में लगभग सभी के घरों में बैल, गाय और भैंसे हुआ करती थी, और खेती का पूरा काम बैलों द्वारा किया जाता था। गाँव मे जिनके यहाँ बैल होते थे उनकी बड़ी इज्जत होती थी। कुछ लोग अपने खेतो की जुताई करने के लिए बैलों को मांग कर ले जाते थे, जिनकी जैसी हैसीयत होती थी, उसी हिसाब से उनके यहाँ जानवर होते थे। उस समय तक गाँवों में जजमानी प्रथा प्रचलित थी, हालाँकि अभी भी बहुत से जगहों पर ये प्रथा है, लेकिन शादी, व्याह में नवाचार ही तक सीमित है।

ऐसे ही एक गाँव के एक सम्भ्रांत परिवार में एक हलवाहा रामराज रहता था, बैलों और भैसों को पालने का बड़ा शौकीन। बहुत मेहनती और ईमानदार, अक्खड़ लेकिन बात का पक्का। छोटी कद काठी थी, बहुत फुर्तीला और जोश से भरा हुआ। कहीं चार पांच कोस पर अगर जानवर की बाजार लगती तो रामराज जरूर जाता, और अपने पसंद के जानवर खरीदने के लिए मालिक से बोलता। सब लोग रामराज की बात मानते थे क्योंकि रामराज की वजह से घर मे हमेशा ही दूध दही घी सब कुछ रहता था। खेतों की जुताई और समय पर फसलों को लगाना काटना सबकुछ हो जाता था।

घर के बच्चे भी रामराज को बहुत प्यार करते थे क्योंकि वो बच्चों को हल पर बैठा कर खेतों को समतल किया करते थे, बच्चों को उस पर बैठकर बहुत मज़ा आता था। उन्होंने दो बड़े बड़े बैल, गांव में ऐसे बैल किसी के यहाँ नही थे धीरे धीरे रामराज घर के सदस्य की तरह ही हो गए, बच्चे, बड़े, बुजुर्ग सबलोग रामराज को बहुत मानते थे। रामराज थोड़ा तुनकमिजाज थे मतलब अगर उन्होंने कुछ मांगा या कहा तो वो पूरा होना चाहिए नही तो वो नाराज़ हो जाते थे, उदाहरण के लिए अगर उन्होंने दो बार खाना मांगा और किसी ने सुना नही या परोसा नही तो वो गुस्सा हो जाते थे और फिर खाना नही खाते थे, इसलिए घर के सभी लोग उनका बहुत ध्यान रखते थे। धीरे धीरे रामराज के बारे में आसपास के गॉंव में बाते होने लगी, और लोग चाहते थे कि मेरे यहाँ भी रामराज या रामराज जैसा ही कोई हलवाहा काम करे।

धीरे धीरे समय बीतता गया और फिर रामराज ने अपने मालिक को बताया कि उन्होंने एक लड़की देखी है, और उसे व्याह करके वो अपने घर लाना चाहता है। मालिक ने रामराज के लिए दो कमरे का एक छोटा का मकान बनवा दिया, और फिर रामराज का व्याह हो गया और दुल्हन आ गयी। रामराज अपने परिवार के साथ बहुत खुश था, मालिक भी रामराज के काम से बहुत खुश थे। जब भी घर मे कोई भी बीमार होता था या किसी को कोई परेशानी होती थी तो रामराज हमेशा ही सबसे आगे रहता था। रामराज ने अपनी पूरी जिंदगी ऐसे ही मालिक के साथ काटने का फैसला कर लिया था। रामराज और उसकी पत्नी दोनों ही अपने मालिक के यहाँ बहुत खुश थे।

ऐसे ही जिंदगी चलती रही रामराज का बेटा पैदा हुआ, जिसका नाम शिवराज रखा। जब शिवराज पांच साल का हुआ तो मालिक के कहने पर रामराज ने अपने बेटे का नाम गाँव के ही प्राइमरी स्कूल में ऐडमिशन करवा दिया। रामराज का बेटा भी मालिक के बच्चों के साथ पढ़ने लगा और उसका पूरा खर्च मालिक उठाता रहा। शिवराज ने गाँव के स्कूल से ही हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली। अब धीरे धीरे रामराज की भी उम्र ढल रही थी और मालिक भी बूढ़े हो चले थे। एकदिन रामराज मालिक के पास बैठा था तभी शिवराज भी वहाँ आ गया। मालिक ने शिवराज से पूंछा अब आगे क्या करोगे कुछ सोंचा है तुमने? शिवराज ने कहा मैं फौज में जाना चाहता हूँ, मालिक ने कहा ये तो बहुत अच्छी बात है, तुम तैयारी करना शुरु कर दो, इसबार आने वाली भर्ती में तुम्हें इम्तहान देना है। शिवराज मेहनत से तैयारी करने लगा और इस बीच मे होने वाली कई भर्ती को देखने गया जिससे उसको समझ आ जाये कैसे और क्या क्या भर्ती में होता है। पूरी तैयारी के बाद शिवराज ने फौज का इम्तिहान पास कर लिया। शिवराज की भर्ती सीआईएसएफ में हो गई, फिर शिवराज ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद चला गया और उसकी पहली पोस्टिंग कोचि एयरपोर्ट पर मिल गयी।

रामराज अपने मालिक के द्वारा किए गए एहसान को पूरे गॉंव में बताता रहता और भगवान से यही दुआ करता कि मालिक और उनका परिवार हमेशा ही सुखी रहे। रामराज की तो जैसे पूरी जिंदगी ही बदल गयी थी, उसके बेटे की भर्ती सीआईएसएफ में हो गयी थी। शिवराज अपनी छ महीने की ट्रेनिंग पूरी करके गॉंव आया, आते ही वो मालिक के पैर छूकर धन्यवाद किया और अपनी पहली सैलरी उनको दी, ये देखकर रामराज को अपने बेटे पर बहुत गर्व हुआ। मालिक ने शिवराज के पीठ पर हाथ रखते हुए बोला बेटा मैंने तो सिर्फ अपना फर्ज किया है, जैसा मैंने अपने बच्चो के लिए किया। तुमने अपनी मेहनत से ये मुकाम हासिल किया है, और तुम्हारे माँ, पिता जी की मेहनत, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा का फल है। आसपास के गाँव मे शिवराज की चर्चा होने लगी, साथ ही मालिक और रामराज के बारे में भी लोग बातें करने लगे।।

इसी बीच शिवराज के लिए अनेकों रिश्ते आने लगे और एक सुंदर लड़की से उसकी शादी हो गयी। कुछ दिनों बाद शिवराज अपनी को लेकर साथ चला गया, और हँसी खुशी अपनी जिंदगी व्यतीत करने लगा। रामराज और उसकी पत्नी आज भी मालिक के साथ खुशी से जीवन व्यतीत कर रहे है। ये कहानी रामराज जैसे कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार और परिश्रमी हलवाहे की है, जो केवल एक हलवाहे नही थे वरन एक अच्छे इंसान भी थे। उनकी ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता ने ही उनके जीवन को सफल बना दिया, और शायद रामराज जैसे बहुत से ऐसे हलवाहो के बच्चे भी पढ़ लिख कर आगे नाम रोशन किये होंगे।।




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