गुरुजनों का आगमन
गुरुजनों का आगमन
वर्गमित्र के पुनरमिलन के कार्याक्रम के उध्दाटन का समय हो रहा था. जिन मित्रों को अतीथियों को लाने के जिम्मेदारी दी गई थी. उनके फोन आने शुरु हो गये थे. थोडी देर बाद हम अतिथीयों को लेकर पहूँ च रहे हैं. सभीने उनके स्वागत के लिए अपनी- अपनी कमर कस ली थी. जैसे ही सभी अतिथी आगे-पिछे आने लगे, सभी ने उनका गर्म जोशी से स्वागत किया था. अल्प परिचय के बाद उन्हे नाश्ता करने का अनुरोध किया गया था. जलपान समारोह, अल्प परिचय का कार्यक्रम संपन्न होने पर, आज के कार्यक्रम के उध्दोषक द्वारा उने, मंच पर आवंटीत स्थान पर बुलाकर स्थानापन्न होने का अनुरोध किया गया था. सभी विद्यार्थीयोंने सभी गुरुजनों को उनके लिए आवंटित स्थानों पर आदर सत्कार के साथ ले गये थे. उन सभी को आदर के साथ स्थानापन्न होने का आग्रह किया था. सभी गुरुजनों ने अपना-अपना स्थान सुनिश्चित किया था. कार्यक्रम की व्यवस्था तथा सजावट को देखकर वे भावविभोर हो चुके थे.उन्हे ऐसे कार्यक्रम की अपेक्षा बिलकुल नहीं थी. वे किसी साधारण से कार्यक्रम कि कल्पना के साथ घर से निकले थे.
रीना : आज के कार्यक्रम की शुरुआत हम दिप प्रज्वलन से करेंगे. उसके लिए मैं सभी गुरुजनों को आमंत्रित करती हूं. अतिथीयोंने अपन- अपना स्थान छोडकर दिप प्रज्वलन करने आये थे. उसके बाद दिप प्रज्वलन का कार्यक्रम अतिथीयों द्वारा पूर्ण किया गया था. सभी ने दिप प्रज्वलन के बाद अपन-अपना स्थान ग्रहण कर लिया था.
रीना: मै,श्रीमती पदमा और अन्य सहेलीयों को स्वरस्वती वंदना गाण प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित करती हूं .
पदमा और सहेलीयों द्वारा स्वरस्वती वंदना गाण प्रस्तुत किया गया. माहौल बनाने के लिए चिर- परिचीत अन्य गाणे भी गायें गये थे. वातावरण एक्दम प्रसन्नचित्त और उर्जावान हो गया था.गुरुजनों और वर्गमित्रों की उर्जा और सक्रियता को देखकर ,ऐसा नहीं लग रहा था कि वे सभी साठ के पार हो चुके हैं.
रीना: पदमा और सहेलीयों को अच्ची प्रस्तुतिकरण के लिए धन्य्वाद दिया.
उध्दोषिका रीना द्वारा सभी अतिथीयों का बारी-बारी से उनका परिचय पढा गया था. हम में से कुछ मित्रों द्वारा सभी अतिथीयों को शाल, श्रीफल और गुलदस्ता देकर उनका सम्मान किया गया था.
रीना : अभी मैं ,ऐसे वर्ग मित्र को आमंत्रित कर रही हूं, जो दिखने में बडा सीधा -सरल दिखता हैं.लेकिन बडा उर्जावान और अती गुनवान हैं जो आपको इस कार्यक्रम की कल्पना उनके दिमाग में कैसे आई और उन्होने इसे कैसे साकार किया हैं. इसका विवरण सभी को देने हेतु, अभी मैं ,अरुण को आमंत्रित करती हूं. सभी ने तालीयां बजाकर उसका हर्षध्वनी के साथ स्वागत किया था.
अरुण: आज के कार्यक्र्म में उपस्थित सभी मेरे आदरणीय गुरुजन और सभी प्रिय वर्गमित्रों, आज का दिन हमारे जीवन का सबसे सुनहरा दिन हैं क्योंकि आज हम सभी अपने आदरणीय गुरुजनों के साथ लग-भग चालिस साल बाद मिल रहे हैं. आप सभी का इस कार्यक्रम में, मैं तहे दिल से स्वागत हैं. आप सभी सादुवाद के पात्र हैं क्योंकि आप ने यहाँ आकर इस कार्यक्रम में चार-चांद लगा दिये हैं. मैं सभी गुरुजनों का विशेष आभारी हूँ कि इस उम्र में, इतनी थंठ होते हुयें भी, अपने स्वास्थ का खयाल ना रखते हुयें, उत्साह और उमंग के साथ, हमारे भावनाओं का यहाँ आकर सम्मान किया हैं. उसके लिए हम सभी उनके ऋणी हैं.मुझे बडी खुशी है कि मुझे ऐसे काबिल गुरुजनों का सहवास मिला था. उन की कृपादृष्टी से मैं आज सकुशल अपने कार्यालय से सेवानिवृत्त इसी साल होकर, लग-भग अपनी सभी पारिवारिक जिम्मेदारीयों का समाधान कर सका हूँ. आपा सभी मेरे इन विचारों से सौ फिसदी सहमत होगें !.
मेरे सेवानिवृत्ती के उपलक्ष्य में, मैंने,कार्यालय के सह्योगी एवमं अधिकारीयों तथा अन्य मित्रों के लिए एक पार्टी का आयोजन किया था. उस पार्टी में मेरे खास नागपुर के लंगोटी वर्गमित्र, श्री गुनवंता और श्री श्रीकांत को भी अपने-अपने पत्नीयों के साथ आने का मनपूर्वक न्योता दिया था. वे दोनों अपने –अपने परिवार के साथ पार्टी में आये थे. इस पार्टी को देखकर, दोनों ने अपने वर्गमित्रो कि भी एक ऐसी पार्टी का आयोजन करने का विचार उन्होने मेरे समक्ष रखा था. मैंने तुरंत कहा, दोस्तों के लिए तो जान हाजिर हैं. पार्टी कौन न सी बडी बात है. अब तो हम सब खाली-पीली हो गयें हैं. जब चाहे, जहां चाहे ,पार्टी कर सकते हैं. फिर अगले मुलाखत में इस कार्यक्रम पर विचार करके, करने का वादा किया गया था. इस कार्यक्रम को साकार करने के लिए गुनवंता और श्री श्रीकांत ने स्थानिय मित्रों के साथ, प्रदीप,किशोर, मदन,सुनील , दिलीप और किरण से संपर्क किया गया और यह प्रस्ताव रखा गया था.जिसे उन्होने हाथो हाथ उठा लिया था.सभी ने उसके लिए आव न देखा, ना ताव ,तुरंत हामी भर दी थी. ऐसा लगता था कि वे इसी अवसर का इंतजार कर रहे थे. फिर हम नागपुर वाले मित्रों ने यहाँ चक्कर लगाना शुरु किया था. इन चक्करों के दौरान,कार्यक्रम करने के लिए जमिन तैयार हुई थी. इस कार्य में सबसे ज्यादा योगदान श्रीकांत का रहा हैं. उसीने सभी मित्रों के फोन नंबर और महिला मित्रों का भी पता लगाया था. उनसे संपर्क भी बनायें रखा था. इसके लिए उसे उनके पतीयों से फट्कार,जली-कटी बातें भी सुनने पडी थी. लेकिन हमारे एक गज सिनेवाले मित्र ने कभी हथियार नहीं डाले थे क्योंकि शेर कभी अपना इरादा बदलता नहीं है. उसने एक व्हाट्स अप ग्रुप बनाया. जीसका नाम है सेकंड रेसर इंनिंग जिओ ग्रुप. आज मुझे बहुत दुःख हो रहा है. मुझे बहुत बुरा लग रहा है, क्योंकि जीस वर्गमित्र ने सभी वर्गमित्रों के जलसा का आयोजन करने में अपना सौप्रतिशत योगदान किया हैं. आज के पावन दिन पर, वह अपने स्वास्थ कारनों से डॉक्टर की सलाह और हमारे समझाने पर उपस्थित नहीं हैं. हम सभी उसके जल्दी –जल्दी स्वास्थ लाभ के लिए ईश्र्वर से प्रार्थना कर रहे हैं. इस कार्यक्र्म के आयोजन का श्रेय उसे जाता हैं. वो हमारे आँख का ताराबन चुका हैं सभी उसे अंक भरते हैं. मैं, सभी भाभीयों को “ सम्मान का मुजरा” आप के सामने करता हूँ . जीस में मेरी पत्नी भी हैं. जीन्होने इस कार्यक्रम करने में अपना योगदान दिया हैं. उनके योगदान के बिना, ना हमारी जिंदगी के काम हो सकते हैं, ना आज कार्यक्रम. मैं फिर से सभी गुरुजनों, आप सब मित्रगण और मेरी प्यारी भाभीयों को तहे दिल से धन्य्वाद देता हूँ. इसी के साथ मैं अपने दो शब्द पुरे करता हूँ . आगे के कार्यक्रम के संचालन के लिए माईक रीना को सौंप रहा हूँ .
रीना: "जैसे कि आप जानते हैं, यह कार्यक्रम सफल बनाने में हमारा क्लासमेट श्रीकांत का बहुत बडा योगदान है. लेकिन स्वास्थ समस्या की वजह से वो इस बेमिसाल, शानदार,जानदार कार्यक्रम में हमारे साथ नहीं हैं.लेकिन वह भावनात्मक दृष्टि से,मन से हमारे साथ ही हैं. उसकी प्रत्यक्ष अनुभुती आप सब को उसके द्वारा भेजे गयें संदेश को सुनकर हो जाएंगा !. संदेश पढने के लिए उनके बहुत ही करीबी मित्र गुनवंता को मैं आमंत्रित कर रही हूँ ."
गुनवंता : मुझे और अरुण को श्रीकांत को समझाने में कितने कठिन हृदय से कार्याक्रम में मत आ करके कहना पडा. ये तो हम ही जानते हैं. जो जलता हैं ,वो ही जानता हैं.उसका यहां ना होने से हमें कितना कष्ट सहना पडा रहा हैं, ये हमसे बेहत्तर कोई नहीं जानता. लेकिन उसके आगे के जीवन में कोई बाधा ना आये इसके लिए ये कठोर कदम उठाना पडा था.इस कार्य के लिए हम उसको, आपको साक्षी रखकर माफी मांगते हैं. हमे उम्मीद है कि हमारा विशाल मन वाला मित्र हमे माफ कर देगा !. मैं उसके द्वारा भेजा गया संदेश आप को पढकर सुनाता हूँ क्योंकि शो मस्ट गो ऑन.
गुनवंता : "मैं, श्रीकांत ,आप का वर्ग मित्र आप सबको कार्यक्रम में सम्मेलित होने के लिए हृदय से आपका अभिनंदन करता हूं. सभी उपस्थित गुरुजनों को मेरा प्रणाम. हम सब मित्रों ने बडे मेहनत और लगन से इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए प्रयास किया है. आज मैं ,शरीर से आप के साथ भले ही नहीं हूं . लेकिन मेरा मन और मस्तिष्क आप के बीच उपस्थित है. आज हम सब जिंदगी के ऐसे मुकाम पर खडे हैं, जिसे पाने के लिए हमारे माता-पिता, गुरुजनों तथा मित्रों का अहम योगदान हैं. शायद बहुत कम ऐसे वर्गमित्र होगें, जीनके उपर अपने माता-पिता का साया अभी बचा होगा.आज कुछ गुरुजन और वर्गमित्र ही बचे हैं जो हमारे जीवन सफर के साक्षी हैं. हमारा उदेश सिर्फ इतना है कि जो हमारी मित्रता थी,वो आज और कल भी ऐसेही बनी रहे !. ये मित्रता हमारे अंतिम सांस तक हमारे साथ साया बनकर रहे क्योंकि आगे का सफर सिर्फ पती-पत्नी या अकेले का ही होगा!. हमारे बच्चे अपने परिवार में व्यस्त होगें. वह चाहकर भी हमें समय नहीं दे पायेंगें !. आज कि दुनियां पहिले से कॉफी अलग और गतिमान हो चुकी हैं. बच्चों कि अपनी अलग दुनियां हैं.उन्हे अपने दुनिया में अपने तरिके से जीने दो! .उनसे हम, कोई अपेक्षा ना करे. अपेक्षा करने पर, अगर उपेक्षा हूँ ई तो हमे दुःख होगा !. इतनी सफल जींदगी जीने के बाद, अंतिम समय में दुःखी होकर दुनिया को अलविदा नहीं कहने का !. हम अपनी खुशीयों के खुद ही सौदागर बनेगें !. इसलिए इस कार्यक्रम में हमने अपनी-अपने मित्रों के साथ ही सामूहिक इकसठवीं मनाने का ध्येय रखा हैं. आप सबको इकसठवीं की ढेर सारी, मेरे तरफ से शुभकामनायें. अंत मै,
“अभी अलविदा मत कहो,मेरे दोस्तों, न जाने ज़िंदगी के किस मोड पर फिर मुलाकात होगी !”
धन्यवाद .आपका मित्र.श्रीकांत"
श्रीकांत का भेजा संदेश पढा गया था.सब की आंखे नम हो गई थी. और सभी ने उसके शीघ्र स्वास्थ लाभ की कामना की थी. इसी के साथ मैं आगे के कार्यक्रम संचालन के लिए माईक को गुनवंता ने रीना को सौंप दिया था.वो फिर धीरे-धीरे अपने स्थान पर जाकर बैठ गया था.