दो घमंडी मित्र
दो घमंडी मित्र
विषय–आओ घमंड भाव का त्याग करें।
एक गांव में दो मित्र रहते थे एक का नाम रामू तथा दूसरे का नाम श्यामू था। दोनों में पक्की वा गहरी मित्रता थी। चूंकि रामू अमीर बाप का इकलौता वा बिगड़ैल औलाद था जबकि श्यामू गरीब मां–बाप के इकलौते संतान थे। श्यामू के पिता नहीं थे वे बचपन में ही गुजर गए थे। रामू के संगति में श्यामू भी रामू की तरह व्यवहार करता था।
श्यामू के पड़ोस में रवि नाम का एक सभ्य शिक्षक रहता था वह श्यामू को कई बार समझाया कि उस लड़के के साथ घूमना फिरना ठीक नहीं है लेकिन श्यामू उनका एक भी नहीं सुना उल्टा वह रवि गुरुजी को भला बुरा कहा। श्यामू गरीब था किन्तु वह अपने मित्र के बल पर अकड़ कर चलता था। दोनों एक दिन पास के शहर जा रहे थे रास्ते में एक वृद्ध व्यक्ति जमीन पर गिरा हुआ था उसने उन दोनों से हाथ हिलाकर सहायता मांगा किंतु दोनों घमंडी मिजाज के लड़के थे। उस वृद्ध की सहायता करने के बजाय उसे भला–बुरा कहकर आगे बढ़ गए।
कुछ दिन बाद गांव में चोरी के इल्जाम में श्यामू पकड़ा गया। श्यामू को लगा उनका मित्र सहायता करेगा और वह पल भर में छूट जायेगा। किंतु रामू उनको छुड़ाने की बात तो छोड़ो वह मिलने भी नहीं आया। श्यामू की मां ने पड़ोस के शिक्षक रवि जो सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर हाथ बंटाता था उनके पास जाकर अपने पुत्र के बारे में सारी कहानी बताई फिर वह शिक्षक गांव के सम्मानित व्यक्ति शत्रुहन काका के साथ मिलकर जमानत के लिए थाना पहुंचे। दोनों ने मिलकर श्यामू को छुड़ाया। श्यामू उन दोनों को देखकर शर्मिंदा हो गया क्योंकि वह उस समय रवि गुरुजी जी की बात को हल्के वा मजाक में लिया था और शत्रुहन काका वही व्यक्ति थे जिन्होंने रास्ते में एक बार सहायता मांगा था। श्यामू थाने से बाहर आने के बाद हाथ जोड़कर माफी मांगी वा उन्हें अपने गलती का एहसास हुआ। समय के साथ उसमें काफी सुधार हुआ वह दूसरों की मदद करने में हमेशा आगे रहते थे। घमंड से वे कोसो दूर हो गए। इस कहानी का सार यही है कि हमें असहाय लोगों की मदद करने में हमेशा आगे रहना चाहिए तथा घमंड की भावना मन में नहीं रखना चाहिए और श्यामू तो वो लड़का था जो अपने मित्र के बदौलत घमंड कर रहा था।