दीपा-2
दीपा-2
दीपा की मां भट्ट,गहद, बड़ियां,भांग और दीपा की पसंद का मुरब्बा मर्तबान में भर कर ले आई थी।वे,उसके बैग में आँचल से अपने आंसू पोछते हुए सब अटा रहीं थीं। दीपा भी भावुक हो रही थी। दीपा को मायके से आज विदा होना था। मां से फिर दूर हो जाने की टीस उसके मन को छलनी कर रही थी। रमेश उसकी मनोव्यथा समझ रहा था।मगर लौटना तो था ही। उधर उसकी माँ के हाथ के छाले घाव में बदल गए थे और छोटे बहन भाई प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थी,मझली बहन भी छुटियां बिता कर लौट गयी थी। इसलिए रमेश हफ्ते भर पहले ही लेने चला आया था।रमेश ने पाया कि दीपा जितनी सहज अपने मायके में होती है उतनी वह अपने घर में नहीं होती।उसे फिर अपनी मझली बहन का चेहरा याद आया ऐसा ही तो कुम्हला जाता है जब भी वो अपने सौरास लौटने वाली होती है ।जबकि उसकी शादी को 3 साल हो चुके थे।
कुछ सोच कर उसने दीपा से कहा "तुम एक दिन और ठहरना चाहो तो...","हाँ ,जीजाजी रुक जाइये न ।" 9 वर्ष का वरुण उसके पैरों से लिपट कर बोल उठा।दीपा के मायके में परिस्तिथियों से अनभिज्ञ भीगी आंखें चमक उठी थीं।"हाँ जीजाजी ,आज ही आये और आज ही निकलना ,कुछ दिन तो आनंद उठाइये इन खूबसूरत वादियों का।" सविता बोल उठी । "हहह जरूर आप घूमाएँगी तो क्यों नहीं" रमेश ने कहा।
रमेश, दीपा ,वरुण ,सविता चारों दीपा के कॉलेज को देखने जा रहे थे। सविता ने शार्ट कट से जाने को कहा। शार्ट कट रास्ते की खूबसूरती देख कर रमेश बेहद खुश हो रहा था। "लाजवाब!! क्या रोमांटिक जगह है यह!!" रमेश ने दीपा की ओर देखा ,दीपा मुस्करा दी।"जीजा जी यहांअक्सर धीरज दादा लेटे मिलते थे ,बहुत अच्छी बांसुरी बजाते हैं।"वरुण किसी को ढूंढते हुए बोला। सविता तुरंत वरुण के सर पर चपत लगाते बोल उठी।" तुझे तो घर छोड़ आना था।" मगर दीपा शान्त रही, रमेश आस पास की खूबसूरती में मगन था। "कुछ देर रुकें यहाँ?"
रमेश,तरुण को लेकर कुछ दूरी पर घास पर ही लेट गया ।दीपा-सविता कंडी से एक-एक कर चटाई पर समान जमा रहीं थी। छोटी सी पिकनिक हो गयी थी।"दी जीजाजी कितने हैंडसम है । ऋषि कपूर जैसे दिखते है न ?" ,दीपा ने देखा वाकई सविता ने सही कहा था। दीपा फिर मुस्करा दी।"इतना चुप चुप क्यों हो दी। "सविता फुसफुसाते हुए बोली।"चुप चुप कौन है?!!! " रमेश ने चौंकते हुए कहा।"दीपा दी और कौन?","अच्छा जी!! दीपा जी और चुप?" ,"क्यों जीजा जी , आप ऐसा क्यों बोल रहे?" दीपा ने रमेश कि ओर देखा। पहली बार दीपा को एक "बहु" के रुप मे अपने मायके में होने का अहसास हुआ।अपनी गलती का यूँ अभी बाहर आना उसे बेचैन कर गया।उसे लगा कहीं रमेश उसकी, सास जी के बीच हुई बात न कह दे।वह एक टक रमेश को देखने लगी।
महीने भर पहले छुट्टी के दिन रमेश ने मां के साथ मंदिर
की साफ सफाई करते हुए वहां सबसे नीचे बंधी रखी एक पुरानी एल्बम निकाली थी ।मंदिर के सामने बैठे बैठे रमेश और सास जी के बीच उसकी ,भाई बहनों की पढ़ाई ,शादी और जिम्मेदारियों को लेकर बात चीत होने लगी।बातों बातों में सासजी ने रमेश की गलतियां बताते हुए उसका युवावस्था में समय और पैसे बर्बाद करने को लेकर सच मगर कड़वी बातें कहीं। दीपा की मौजूदगी में उसे ऐसे कहे जाने पर उसका अहम चोटिल हो गया। वह माँ पर बहुत गुस्सा हो गया। उस दिन रमेश को इस तरह सास जी की बातों पर क्रोधित होता देख दीपा समझ गयी कि रमेश में अहम का भाव बहुत है और उसे बर्दाश्त नहीं होता कि कोई सीधे सपाट शब्दों में उसे उसकी कमियां या गलतियां बताए।
बहस के बीच दीपा ने उसे पानी का गिलास लेकर दिया लेकिन रमेश ने गिलास फेंकते हुए उसे ही सुना दिया।"तुम्हारी वजह से आज यह सब सुनने को मिल रहा है। न शादी होती ना इनको मैं नालायक लगता।सारा ध्यान तो तुम्ही पर है ना मेरा।" इधर दीपा भी सरला से खुद को प्रताडित समझती थी।रोज सुबह से रात तक की सास जी की वही हिदायती बातें सुन सुन कर किलस जाती थी। दीपा भी अपने घर की बड़ी थी सो उसके स्वभाव में एक आधिपत्य का भाव था जो अभी तक छुपा हुआ था।अपने मायके में सुई से खेत तक सब उसकी नजर में रहता। लेकिन यहां बड़ी बहू होने के बावजूद उसे अपने हिसाब से कुछ करने की आज़ादी नहीं थी। सास जी ने जो चीज जहां रखी, जैसे इस्तेमाल करने को कहीं,जिस तरह से कहीं उसमे वह सुधार करने की सोचती या करती तो सास जी कह देती "अभी जिंदा हूँ मैं।"
सो उस रात अहम पर चोट खाये रमेश ने दीपा से अपने व्यवहार के लिए माफी मांगते हुए अपने मन के अंधेरे कोने को बांटा।उसने भावुकता में मां सरला के वे सब अतीत के दोष बताये जो नहीं बताने चाहिए थे।मगर ऐसा करते हुए भावनात्मक रूप से उसके और दीपा के बीच एक समझ ,जुड़ाव बन रहा था। दीपा को रमेश के मन मे रिश्तों को लेकर छुपी गांठे दिख रहीं थीं लेकिन वह चुपचाप इसकी बाते सुन कर उसे रिलैक्स करतीं रही उसने कहा " माँ तो माँ ही रहेंगी । लेकिन मां को भी अब यह समझना चाहिए कि उसकी भी कोई इज्जत है। बीती बातें दोहराना सही नहीं है। फिर अब वह बच्चा नहीं रहा ,दुनियादार है। और वह लोगों को जैसे व्यवहार की अनुमति देगा वही उसके साथ होता रहेगा वगैरह ।रमेश आहत था उस वक्त दीपा की बातें उसे सुकून दे रही थी।
अगली सुबह पूरा घर रमेश से नाराज था। रमेश भी सिर्फ दीपा से बता कर ऑफिस चला गया। सरला को यह बात आहत कर गयी।रमेश अब भी उनके लिए वही स्कूल जाने वाला 8 साल का "रामी" था जो कितना भी नाराज होता पर अगले दिन माँ से गले लग कर ही स्कूल जाता। सरला तब उसके लिए उसकी पसन्द की कापली भात बना कर रखती और अपने हाथ से खिलाती। शाम को जब सरला ने मंदिर में दिया बाती करते हुए रात के खाने की बात छेड़ी तो छोटी ननद ने बताया कि भाभी आज कुछ स्पेशल बना रहीं हैं।
शाम को रमेश जब लौटा तो घर के बाहर तक आती व्यंजन की खुशबू से उसका मन खुश हो गया।लेकिन अंदर का माहौल अलग ही था। किचन में सारा खाना बिखरा पड़ा था,दोनो बेटियां उसे साफ कर रहीं थी। वह हैरान रह गया।मां कराहते हुए अपने हाथों पर पानी डाल रहीं थीं।उसने फौरन आगे बढ़ कर मां का हाथ देखा,लाल हो गया था।माँ की साड़ी पर छींटे पड़े थे ।फटाफट उसने मां के हाथों पर बरनोल लगाया। उसने इधर उधर देखा दीपा कहीं नजर नहीं आयी। "दीपा दीपा" उसमे आवाज लगाई। उसने देखा मां के चेहरे पर घृणा के भाव उभर आये। "भैया रहने दो, भाभी को बुलाने की जरूरत नहीं, जो हुआ वो ही बहुत है।" दीपा अपने कमरे से तेजी से बाहर आते हुए बोली "और जो मेरे साथ होता रहता है वह ज्यादा नहीं है ,दिन भर चिक-चिक, चिक-चिक भले ही नौकरानी की तरह लगे रहो ,अपनी मर्जी से सुई तक उठाने की आज़ादी नहीं है इस घर में।"रमेश हतप्रभ हो दीपा को गुस्से में खौलता हुआ देख रहा था। यहां सबको साफ दिख चुका था कि दीपा का क्रोध भी वैसा ही था जैसा रमेश का था। इधर गुस्से में उबलती दीपा ने देखा नहीं कि सास जी के हाथ बुरी तरह झुलस गए हैं। उसके बिना पूछे अपने मन से खाना बनाने को टोकने पर शुरू हुई बहस में दीपा के गुस्से से कड़ाही चूल्हे से उठा के पटक कर चले आने पर सारा सालन नीचे रैक पर टमाटर रखती हुई सास जी के हाथों पर गिर गया था। पर वह इन सब बातों से अनभिज्ञ अपने क्रोध पर काबू नहीं पा रही थी। रमेश की पिछली रात बताई कमियों को वह अपने संदर्भ में लगातार कहे जा रही थी।सुन कर सरला रोने लगी।वह समझ गयी कि उसका "रामी"अब खो गया है। माँ को रोता और दीपा को उबलता देख रमेश ने मां को चुपचाप उठाया और डॉक्टर के पास ले गया।
रात में रमेश ने दीपा से बात नहीं की। दीपा भी गुस्से में भरी हुई थी।उसनेे भी पहल नहीं की।दीपा का रौद्र रूप देख कर ,उसकी कही बातें घूमा
कर मां को ही सुना देने से रमेश बहुत छला हुआ सा लग रहा था।अगले दिन दीपा ने मायके जाने की बात की। नेेगी जी अपनी धर्म पत्नी सरला जी के मानसिक औऱ दैहिक त्रास से काफी दुखी थे। उन्होंने महीने भर के लिए दीपा को मायके छोड़ आने को कहा। रमेश उसे चुपचाप छोड़ आया था। सरला को बेटे बहू के बीच आया खिंचाव महसूस हो गया था। वह मन ही मन दुखी भी थी कि बहू के बगैर उसका बड़ा बेटा दुखी रहता है। घर मे एक सूनापन था।सुबह से लेकर रात तक दीपा की पायल की आवाज जो हर कमरे में घूमती सुनाई देती थी ,मसाला पीसते चूड़ियों की लय और उसका दमकता चेहरा सबको याद आता था। मगर अगले ही पल सरला के दुखते छाले और उस शाम की कड़वाहट फिर से सब ढंक देती।
"मुझे ऐसे क्या घूरे जा रही हो दीपा जी,मजाक कर रहा था। "रमेश ने दीपा को, पास ही उगा जंगली फूल तोड़ कर मारते हुए कहा। तरुण और सविता बेडू तोड़ने कुछ दूरी पर चले गए थे। दीपा खामोश सी ग्लानि से वहीं गड़ गयी । उसे पछतावे में आँसू बहाते देख रमेश उठ कर उसके पास आकर बैठ गया और बोला, "तुम्हे ऐसा नही लगता कि ये जगह कुछ कह रही है?" दीपा ने अपनी आंखें बंद कर ली और जंगल की आवाज को रमेश के साथ सुनने लगी।
" अपने गुस्से पर काबू रखना चाहिये लाटी, गुस्सा ही रिश्ता खराब करता है।"उसने घबरा कर आंखे खोल लीं। धीरज का उसे समझाना अभी भी वहां की फिजाओं में था। "चलिए अब चलते हैं, बहुत लेट हो जाएगा लौटते।"वह जल्दी जल्दी सारा समान कंडी में डालने लगी।