vijay laxmi Bhatt Sharma

Others

3.5  

vijay laxmi Bhatt Sharma

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डायरी दूसरा दिन

डायरी दूसरा दिन

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प्रिय डायरी यूँ तो यह इक्कीस दिन के बंद का तीसरा दिन है पर तुम्हें लिखने का दूसरा दिन है। आज जब सुबह सुबह उठी तो सड़कें सुनसान थीं। कल जो कुछ एक दो लोग दिख रहे थे आज वो भी नहीं थे। तभी एक व्यक्ति मुँह पर कपड़ा बांधे अपना बैग पीछे लटकाए साइकल पर जा रहा था... एक भय था उसके मुख पर शायद सन्नाटे का या फिर मृत्यु का। आजीविका के लिए ही निकला होगा इतनी मुसीबत में भी सच मे पेट की भूख मृत्यु के डर को भी भूल जाती है। खैर वो धीरे धीरे ओझल हो गया फिर पसर गया सन्नाटा पर इन सब में चिड़ियों की चहचाहट स्पष्ट सुनाई दे रही थी। वरना महानगरों मे गाड़ी के शोर में गुम थीं इनकी मधुर चीं चीं। चलो अब घर के काम भी तो करने हैं मैने खुद को आगाह किया और लग गई अपने काम में। घर साफ़ किया... मन्दिर और फिर नहाने चली गई।

नाश्ते की तैयारी करते करते बच्चों को उठने की आवाज़ दी और पूजा करने पूजा घर में चली गई। माँ के नवरात्रि जो चल रहे हैं इसलिए थोड़ा वक्त लगता है पूजा में... सुना राम लला भी तो वर्षों बाद टेंट से चाँदी के आसान पर विराजमान हो गए हैं। दिल को सुकून सा मिला खैर जबतक मेरी पूजा समाप्त हुई सभी उठ चुके थे और एक एक कर नहा रहे थेसूर्य देवता को जल दे मैं भी उनसे शक्ति और ऊर्जा देने की माँग कर रही थीमाँ से भी तो सर्व कल्याण की प्रार्थना कर आइ थी तो सूर्य देव कैसे ख़ाली जाने देते उनसे ऊर्जा ले लग गई थी अपने काम पर सबका नाश्ता बन चुका था और घर के बुजुर्ग से लेकर बच्चे सभी अपने नाश्ते का आनन्द ले रहे थे मैं भी जल्दी जल्दी कार्य निपटा रही थी की मैं भी कुछ खा सकूँ। इसके बाद छत पर आ गई कुछ कपड़े धोने थे... अब एकांत का समय था मैने सोचा अगर इस महामारी से इतने लोग ग्रसित हो रहे हैं तो कितने लोगों के घर मृत्यु का भय पसरा होगा सोच ही रही थी की एक प्यारी सी तितली इठलाती सी छत पर लगे फूलों पर मंडराने लगी जैसे कह रही हो भय कोई हल नहीं हर पल को खुशी खुशी जीओ। कल के लिए आज क्यूँ चिंतित हो... अपना कर्म करती रहो सब अच्छा होगा। कुछ ही पल में चिंता छू मन्तर हो गई और मैं फिर लग गई अपने कार्य करने। निरन्तर कार्यरत रहना ही जीवन है। नियम का पालन करते रहे और अनुशासन में रहें। अपनों का ध्यान रखें। मानव कल्याण के कार्य करते रहें और अपने साथ साथ सबको खुश रखें। ना बुरा करें ना करने दें तो फिर भय कैसा। मृत्यु एक दिन आनी है फिर आज क्यूँ डरें चलो खुशी खुशी जीवन यापन करें। प्रिय डायरी आज इतना ही।


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