पुनीत श्रीवास्तव

Others

4  

पुनीत श्रीवास्तव

Others

बुध्द स्नातकोत्तर महाविद्यालय

बुध्द स्नातकोत्तर महाविद्यालय

6 mins
166


1995 में बुद्ध इंटरमीडिएट कॉलेज से निकलने के बाद कितनी उत्सुकता कौतूहल के बीच कॉलेज में एडमिशन होना था एक चीज जो सबसे अच्छी होने वाली थी अब यूनिफॉर्म नही पहनना पड़ेगा जो मर्जी पहनो श्री शिवदत्त नरायन सिंह की डांट और डंडे से छुटकारा ,

बी कॉम में भीड़ बड़ी होती थी तो तय हुआ उस सत्र में प्रवेश परीक्षा होगी ,पहले मेरिट पर ही हो जाता था 

कल्याण सिंह जी मुख्यमंत्री थे उस वक्त ये याद अभी भी है क्योंकि नकल पर सख़्ती के कारण बहुत कम प्रतिशत में रिजल्ट बना था 

फॉर्म भराया बी कॉम के लिए,प्रोस्पेक्टस में पिता जी का नाम रहता था 

जन्तुविज्ञान विभाग 

डॉ पारस नाथ श्रीवास्तव   प्रवक्ता 

बहुत गर्व होता था ये देख के 

थोड़ी बहुत पढ़ाई 

सामान्य ज्ञान थोड़ी कॉमर्स 

पिछले बार का पेपर मिल गया था जो दो साल पहले प्रवेश परीक्षा हुई थी 

सब मिला जुला के हुई पहली परीक्षा 

बुध्द स्नातकोत्तर महाविद्यालय कुशीनगर के कैम्पस में 

हॉल में थी सीट हमारी 

सारे लोग जाने पहचाने 

डॉ रामजी लाल जी जिन्हें हम मामा कहते 

श्री बी बी सिंह 

श्री डी एन त्रिपाठी 

श्री रामप्रीत तिवारी 

श्री रामाश्चर्य यादव 

और भी सब अपने से कोई पास आता तो पूछता 

ठीक से करना ,सवाल आ रहा है जी ?

खैर परीक्षा सम्पन्न हुई 

कुछ दिनों बाद रिजल्ट दीवाल पर चस्पा हुआ 

पहले नम्बर पर हमारा नाम था 

पहला इम्तेहान पहली पोज़िशन 

गज़ब हो गया तब से 

चार लड़कों के झुंड में खुसफुसाहट होती 

इहे ह जेकर पहिला नम्बर आइल ह इंट्रेंस में 

कुछ कहते टीचर वार्ड ह न 

ये बात अलग है कि इंटर में भी क्लास में दूसरी रैंक थी और बी कॉम प्रथम श्रेणी में पास करने के बाद बी एच यू का एम कॉम ,रुहेलखंड विश्वविद्यालय की एल एल बी भी प्रथम श्रेणी से ही पास किये ,पर टीचर वार्ड का फायदा नुकसान पूरे तीनो साल मिलता रहा 

सुबह की क्लास सिर्फ बी कॉम और बी एड की ही चलती थी आज का पता नही 

शांति रहती थी ,

साइकिल से जाते आते कॉलेज 

आजकल तो सातवी आठवीं के बच्चों के पास स्कूटी बाइक है

समय से क्लास चलती 

पढ़ाई जबरदस्त कोई ट्यूशन की जरूरत न पड़ती पढ़ने वाले फिर भी पढ़ते पढ़ाने वाले फिर भी पढ़ाते 

लाइब्रेरी से किताबें दो ही मिलती बाकी जुगाड़ करनी पड़ती किसी सीनियर से या खरीद के लाइब्रेरी का सिस्टम अजीब तब भी लगता परीक्षा से पहले किताब जमा करने का ये गैर जरूरी बात है आज भी लगता है जब किताबों की सबसे ज्यादा जरूरत हो तब उन्हें वापस लाइब्रेरी में जमा करा लिया जाए 

इस समय की क्या व्यवस्था है नही पता !

शर्मा सर टिबड़ेवाल सर के पी सिंह सर यादव जी हेड ऑफ डिपार्टमेंट जो एस्टेटिस्टिक्स पढ़ाते 

अकाउंट और टैक्स की क्लास कोई न छोड़ता बाकी में गोल माल हो जाता था थिओरी के पेपर का सहारा विकास गाइड 

बीस सवालों वाली 

कभी पढ़ते कभी मन्दिर घूमते 

समोसे चाय पान की दुकानों पर बीच बीच मे मंडराते 

एक नुकसान सुबह की पढ़ाई का ये था कोई कंडोलेंस की छुट्टी नही पा पाते क्योंकि वो दस बजे के बाद ही होती साथ ही कोई हल्ला दंगा चक्का जाम ज़िंदाबाद मुर्दाबाद का रोचक प्रदर्शन भी दस बजे के बाद ही होता 

पढ़ाई के साथ साथ एन सी सी की परेड दोपहर की 

श्री सुभाष चन्द्र राव चाचा जी के साथ 

कैम्प फ़ाज़िलनगर लगा था दस दिनों का 

बन्दूक चलाये दोस्तो के साथ घर से दूर रह के आये ,बाद में एन सी सी की परीक्षा पास कर बी सर्टिफिकेट भी मिला 

एन एस एस रामजी लाल मामा के जिम्मे 

कॉलेज से अपनापन इस वजह से और अधिक हुआ क्योंकि पिता जी वहां थे सब जानने वाले लोग 

बचपन से कॉलेज कभी कभार वार्षिक समारोह में तो कभी ऐसे ही जूलॉजी लैब 

शीशे के मर्तबानो में बंद जीव जंतु किसी कैमिकल की तेज सी महक 

मिश्रा चाचा जी धोती कुर्ता पहने बैठे अपने मेज पर 

नगीना चपरासी आवभगत करते जो कभी कभार जाते पापा की लम्ब्रेटा पर बैठ के ऐसे ही छुट्टी में 

बगल की टीचर्स कॉलोनी 

नीचे राव चाचा जी ऊपर जे पी उपाध्याय चाचा जी गणेश शुक्ला जी अखिलेश सिंह बी बी सिंह झा साहब रामप्रीत तिवारी चाचा जी और भी न जाने कितने लोग क्रम से

इन सभी को इनके बच्चों के हिसाब से ही जाने 

सिद्धार्थ के पापा 

जयेश भईया के पापा 

राहुल के नवीन के धर्मेंद्र के वगैरह वगैरह 

अस्सी के दशक के जवान बजाज स्कूटर पैदल चलते कितना सम्मान था उस दौर में इस डिग्री कॉलेज का उसमे पढ़ाने वालों का ये बस इतिहास है 

पाल साहब बी के पाण्डे गणेश शुक्ला डी एन त्रिपाठी रामप्रीत तिवारी राम जी लाल जी 

हर विभाग में एक से बढ़ के एक शिक्षक 

उस दौर में जिले में इकलौता ऐसा कॉलेज जिसमे बी कॉम बी एड बी ए बी एस ई मैथ और बायो दोनों से उपलब्ध 

हजारों की संख्या में विद्यार्थी जाने कहाँ कहाँ से गोरखपुर बिहार देवरिया पडरौना हाटा 

सारे हॉस्टल फूल 

हटमेन्ट भरे जो हॉस्टल के बगल में है 

विशुनपुरा झुंगवा कुशीनगर भरा लड़कों से 

कसया में चारो तरफ लड़कों की भीड़ किराएदार के रूप में 

ये तो असल मे चुनाव में पता चलता किसी प्रत्याशी को कि कहाँ कहाँ लड़के रहते हैं इसके अलावा पडरौना हाटा में भी जाना पड़ता वोट के लिए 

चुनाव की सरगर्मी हर साल की 

पुरजोर प्रचार पोस्टर नारे 

ट्रालियों पर भाषण 

हो हल्ला 

टेम्पो हाई है 

दावते होस्टलों की कमांडर जीप से प्रचार बिना उसकी मर्जी से जो चला चला के थक जाता कमांडर का ड्राइवर

पट्रोल दबाव से भरते पम्प वाले कुछ तो बंद ही कर देते चुनाव में

दमदार प्रत्याशी 

एक से एक 

राकेश दुबे ,प्रियेश त्रिपाठी ,संजय शुक्ला ,राकेश जायसवाल,कवींद्र पांडेय ,राजेन्द्र पाण्डे ,जे पी ए पाठक ,आनन्द पाल सिंह हाटा वाले फिलिम बाबा झुंगवा से 

प्रचार करते हाथ गोड जोड़ते कुर्ते फट जाते 

कभी अफवाह उड़ती 

पिछली रात बम चल गया फलाने प्रत्याशी पर 

खाट पर लेटे वोट मांगते कॉलेज गेट पर रंग विरंगी पम्पलेट इत्र वाली या बिना इत्र के 

लड़कियों का नजरिया बदलता 

बेचारा दो बार का हारा है 

अबकी इसी को जिताया जाएगा नही जी !!

हाँ जी !!!

जीत के साथ कुर्ते बदलते 

प्योर सिल्क और गेंदा के फूल की मालाओं से सजे हाथियों के ऊपर जीते प्रत्याशी एक जुलूस निकलते जब वो बाएं देखते तो दाएँ तरफ की बस स्टैण्ड की सिंधी की दुकान लूट सी जाती जब वो दाएँ देख के अभिवादन स्वीकार करते बाएं की दुकानों का बड़ा ज्यादे समान गायब होता 

ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद नारो में बड़ा बल होता है ये उस दिन सिर्फ कसया कुशीनगर के दुकानदार समझ पाते 

भव्य शपथ ग्रहण समारोह नए नए कुर्ते पैजामो में नेता जी पीछे समर्थक 

 

हम और हमारे जैसे सब जवान भी हो रहे थे 

आशिक़ी के राहुल रॉय अनु अग्रवाल नदीम श्रवण के गानों को सुनकर 

अन्नू मलिक कुमार शानू अलका याग्निक साधना सरगम के कैसेट डेक और टेप में बजते

गानों की पसंद में भी कभी कभार विविधता होती कोई जगजीत सिंह की ग़ज़लों का शौकीन हुआ अपनी ख़ुद की कहानी से जोड़ कर कोई टूटे दिल से अताऊल्लाह खां का अच्छा सिला दिया से खुश

 पिक्चर हॉल के शो के शो हाउस फूल  

बी ए की लड़कियों की भीड़ कॉमन हॉल में सभी को किसी ख़ास की तलाश 

आज की तरह कोई सोशल मीडिया तो था नही तब 

सहेली को दी चिट्ठी असल मे गन्तव्य तक पहुचती थी 

इस चक्कर मे कभी कभार मार पीट भी हो जाती 

दो मासूम एक ही चक्कर मे पीट पिटा जाते उन्हें पता ही नही चलता तीसरे के सेंटिमेंट हर्ट हो गए 

हो हल्ला जरा सी बात पर चक्का जाम डिपार्टमेंट में ताला 

जिंदाबाद मुर्दाबाद 

इन सब के बावजूद

समय से होते गये इम्तेहान ,होते गए पास बाइज्जत

ये तीन बार हुआ और 

एक सत्र गुजरा पढ़ाई का


मेरी याद मेरे कॉलेज की 95 से 98 तक !!!



Rate this content
Log in