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Kamini sajal Soni

Others

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Kamini sajal Soni

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बिजली की कड़क

बिजली की कड़क

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मेरे पिताजी व्यापारी थे। और व्यापार के सिलसिले में सदैव शहर से बाहर रहते थे। हर सुख-दुख में मेरी मां हमसाया बनकर साथ रहती।


मुझे आज भी याद है बारिश के दिन उस समय हमारा घर कच्चा खप्पर वाला था। और जब बारिश होती तो हम सभी भाई-बहन मां से लिपट जाते डर के मारे।


और जब बिजली जोर से कड़कती थी तो मां हम सभी भाई-बहनों को लिपटाकर दिवार के किनारे सट कर खड़ी हो जाती थी।


शायद उनको भी यह डर सताता होगा कि कहीं बिजली की कड़क से खप्पर वाली छत टूट ना जाए।


आज भी जब बारिश के मौसम में बिजली कड़कती है तो वह बचपन की यादें सहसा आंखों के सामने तैर जाती है और मां की मासूमियत महसूस होती है।


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