Sangeeta Aggarwal

Others

4  

Sangeeta Aggarwal

Others

भेदभाव क्यों

भेदभाव क्यों

5 mins
260


" हैलो पार्थ तेरे जीजाजी को मुंबई में थोड़ा काम है तो मैने सोचा मैं भी आ जाऊं उनके साथ तुम लोगों से मिलना भी हो जाएगा !" प्रतीक्षा ने अपने छोटे भाई को फोन किया।


" हां हां दीदी क्यों नही कब आ रहे हो आप लोग ?" पार्थ खुश होते हुए बोला।


" परसो सुबह पहुंच जायेंगे दो तीन दिन रुक कर जायेंगे !" प्रतीक्षा ने कहा।


" वाह दीदी फिर तो बहुत मजा आएगा हम इंतजार करेंगे आपका !" पार्थ ने कहा और दोनो तरफ से फोन काट दिया गया।


ये है पार्थ जो अपनी पत्नी के साथ एक साल से मुंबई में है क्योंकि दोनो की नौकरी मुंबई में है पार्थ का परिवार मेरठ रहता है और वहीं पार्थ की बहन प्रतीक्षा की शादी दिल्ली में हुई है। पार्थ और उसकी पत्नी रिया का प्रेम विवाह है जो घर वालों की रजामंदी से हुआ है।


" आइए दीदी जीजाजी स्वागत है आपका हमारे आशियाने में !" प्रतीक्षा अपने परिवार के साथ जब पार्थ के घर पहुंची तो पार्थ ने स्वागत किया उसका और चाय नाश्ता परोसने लगा।


" ये क्या पार्थ तू क्यों नाश्ता बना रहा है और रिया कहां है ?" प्रतीक्षा रसोई में आ हैरानी से बोली।


" वो दीदी रिया ऑफिस गई है जरूरी मीटिंग थी दो घंटे में आ जाएगी!" पार्थ बोला।


" उसे हमारे आने का पता नहीं था क्या या उसे हमारा आना अच्छा नही लगा इसलिए निकल गई !" प्रतीक्षा व्यंग्य से बोली।


" नही नही दीदी वो तो बहुत खुश है आपके आने से बस जाना जरूरी था इसलिए गई है अब तो आती ही होगी आप चलिए नाश्ता कीजिए !" पार्थ बोला।


" अरे वाह साले साहब आपने तो बहुत स्वादिष्ट उत्तपम बनाया है लगता है आपकी मैडम ने अच्छी ट्रेनिंग दी है आपको आज के लिए !" पार्थ के जीजा तरुण हंसते हुए बोले।


" हां मामू नाश्ता बहुत टेस्टी है !" प्रतीक्षा का बेटा परख बोला।


" नमस्ते जीजाजी नमस्ते दीदी !" तभी वहां रिया आई और मुस्कुराते हुए उन्हें नमस्ते कहा।


" आइए आइए रिया जी क्या बात है पति देव को बड़ी अच्छी ट्रेनिंग दी है आपने!" तरुण रिया से बोला। जवाब में रिया मुस्कुरा दी।


" रिया तुम बैठो मैं तुम्हारे लिए भी नाश्ता लाता हूं !" पार्थ अपना नाश्ता खत्म करता हुआ बोला।


" नही पार्थ आप बैठो मैं ले लूंगी !" रिया ने कहा और रसोई में चली गई । दोपहर का खाना रिया ने बनाया और शाम को सब बाहर घूमने गए और वही खाकर आए।


" अरे पार्थ तुम इतनी जल्दी उठ गए और ये क्या तुम चाय बना रहे हो ?" अगली सुबह प्रतीक्षा पार्थ को रसोई में देख बोली।


" दीदी सुबह की चाय मैं ही बनाता हूं आप भी पीना मैं बहुत अच्छी चाय बनाता हूं !" पार्थ हंसते हुए बोला।


" ये क्या पार्थ तुम नाश्ता बनाते हो चाय बनाते हो और रिया मजे करती है ऐसा लगता है घर की पुरुष वो है और स्त्री तुम !" प्रतीक्षा उखड़े मूड में बोली।


" दीदी रिया ऑफिस जाती है ये घर उसके ही पैसों से चल रहा आप तो जानती है दो महीने से मैं जॉबलेस हूं और पता नही इस कोरोना के कारण कब मिलेगी जॉब ...रिया पर इस वक्त ऑफिस में काम का बहुत प्रेशर है जॉब बचाने को उसे ज्यादा वक्त देना पड़ रहा ऑफिस में वो थक जाती है तो मैं थोड़ी मदद कर देता हूं उसकी तो क्या गलत है !" पार्थ कल से बहन के व्यंग्य सहता आखिर बोल पड़ा।


" पर ये रसोई के काम तेरे नही रिया के हैं वो तुझे अपनी उंगलियों पर नचा अपने काम करवा रही और तू नाचता हुआ कर भी रहा !" प्रतीक्षा बोली।


" फिर तो दीदी रिया का काम भी जॉब करना नही वो तो मेरा है  पर मुझे जॉब मिल नही रही रिया तो फिर भी घर के आधे से ज्यादा काम करती जॉब के साथ मैं तो एक रुपया भी नही कमा रहा दो महीने से तो नचा तो मैं रहा ना रिया को ...दीदी जब पति पत्नी एक दूसरे के साथी है और रिया मेरा हर तरह से साथ दे रही तो मेरा भी तो फर्ज है ना उसकी थोड़ी मदद करने का इसमें उंगलियों पर नचाने की बात कहां से आ गई !" चाय पीता हुआ पार्थ प्रतीक्षा से बोला।


" सही कहा आपने साले साहब पति पत्नी को हर फील्ड में मिलकर एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए तभी जिंदगी खुल के मुस्कुराती है । आप खुशकिस्मत है जो आपको रिया जैसी पत्नी मिली साथ ही रिया भी खुशकिस्मत है जो आप पति के रूप में उसे मिले।" तभी वहां तरुण आ बोले पीछे खड़ी रिया जो सब सुन रही थी उसे अपने पति पर गर्व हो रहा था।


" हां पार्थ तुम सही कह रहे हो सच में जब रिया नौकरी कर घर चला सकती है तो तुम घर का काम भी कर सकते इसमें गलत कुछ भी नही । गलत तो हमारी सोच है जो औरत को ऑफिस में तो देख सकती पर आदमी को रसोई में नही !" प्रतीक्षा बोली।


" जीजाजी आइए बैठिए आप मैं आपकी भी चाय लाता हूं और दीदी आप भी मेरे हाथ की एक और चाय पियो फिर हम तैयार हो शॉपिंग पर चलेंगे रिया ने आज की छुट्टी ली है खास आपके लिए !" पार्थ मोहोल को हल्का करने के लिए उठते हुए बोला।


" नही साले साहब आज तो चाय हम बनाएंगे अपनी श्रीमती जी के लिए भी और आपकी श्री मति जी के लिए भी !" तरुण ये बोल रसोई में जाने लगा।


" अरे आपने कभी चाय बनाई भी है!" प्रतीक्षा तरुण को रसोई में जाता देख बोली।


" अब साले साहब को देख हममें भी जोश आ गया अब हम भी सब सीख लेंगे क्यों साले साहब आप सिखाओगे !" तरुण बोला।


" नेकी और पूछ पूछ जीजाजी !" पार्थ हंसते हुए बोला।


" अरे नही आप सब बैठो मैं बनाती हूं चाय !" तभी रिया बोली।


" अरे नही रिया तुम मेरे पास बैठो आज तो चाय इनके हाथ की ही पियूंगी मैं !" प्रतीक्षा हंसते हुए बोली तो रिया वहीं बैठ गई और जीजा साले रसोई की तरफ बढ़ गए।


दोस्तों कुछ घरों में अभी भी आदमियों का रसोई में काम करना गलत समझा जाता है। हां उन्हें औरत के कमाने से कोई दिक्कत नही होती ...जाने ऐसे लोगों की सोच प्रतीक्षा की तरह कभी बदलेगी भी या नही।


Rate this content
Log in