अम्मा जी की ज़िन्दगी के उतार चढ़ाव

अम्मा जी की ज़िन्दगी के उतार चढ़ाव

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आज अम्मा जी ने पक्का मन बना लिया था कि अपने सामने वाले पड़ोसी के पास जाकर उसे खुद के लिए कोई ढंग का वृद्धाश्रम ढूंढने को बोलेगी। रोज़ रोज़ घर में होते कलेश से वो बहुत परेशान हो गई थी। ऐसा लगता था जैसे अपने बेटे बहू के साथ नहीं बल्कि परायों के साथ रह रही हो।

अम्माजी तबियत खराब होने पर अगर काम ना कर पाती तो बहू का मुंह बन जाता। पोते पोती को संभालना, खाना खिलाना और उन्हें खेल में लगाए रखना तो उनकी बहू रेखा को काम लगता ही नहीं था। और अगर अम्माजी खाना बना लें और उनका बेटा तारीफ़ कर दे तो बस फिर लड़ाई का बहाना सा ढूंढती रहती रेखा।


कई बार अम्मा जी का मन किया कि बहू को मुंह तोड़ जवाब दे दें लेकिन अपनी आदत से मजबूर हो जाती थी। अम्मा जी को कलेश बिल्कुल पसंद नहीं था और उनकी इसी आदत का फायदा रेखा उठा रही थी। हमारे समाज की सच्चाई यही है, कहीं बहू ससुराल वालों से परेशान और कहीं ससुराल वाले बहू से परेशान। गिनती के घर होंगे जहां परिवार वाले आपस में सामंजस्य बना कर चलते हैं।

अम्मा जी ने तंग आकर इसलिए वृद्धाश्रम में जाने की सोची क्योंकि उन्हें डर था कि रोज़ की लड़ाई से बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा। अभी वो अपना मन पक्का ही कर रही थी कि पास के गाँव में रहने वाली उनकी जेठानी ने उन्हें कुछ दिन के लिए ज़बरदस्ती अपने पास बुला लिया।


अम्मा जी वहां चली गई। वहां अम्माजी का खूब मन लगा। जेठानी से उनकी बहुत पटती थी। गाँव की आबो हवा भी उन्हें बहुत पसंद थी सो हफ्ते के लिए आई अम्मा दो महीना वहीं ठहर गई। बेटे ने बुलाने के लिए कई फोन किए पर अम्मा जी को उनकी जेठानी ने वापिस नहीं भेजा।

अम्मा जी दो महीने बाद जब घर वापिस आई तो खुद को वृद्धाश्रम के लिए पूरी तरह से तैयार करके आई थी। लेकिन घर का तो नज़ारा ही बदला हुआ था। सारा घर फैला हुआ था, बस एक ड्राइंग रूम ही थोड़ा सा मेहमानों के बैठने लायक बनाया हुआ था।


अम्मा जी ने प्रश्न वाचक निग़ाहों से बहू और बेटे को देखा तो बेटे से पहले बहू बोल उठी। अम्मा जी मुझसे तो आपके जाने के बाद अकेले घर नहीं संभला। बच्चे तो रात दिन बस आपको ही याद करते थे और मुझसे भी जैसे अम्मा जी खाना खिलाती हैं कहानी सुना कर वैसे ही करो की ज़िद करते थे। उनकी पसंद का करती तो घर का काम रह जाता और अगर डांट कर खाना खिलाती तो बच्चों का पूरा दिन मुंह बना रहता। और भी कितने काम आप चलते फिरते निपटा देती थी, मुझे उसकी कदर आपके जाने के बाद आई। मुझे पता है अम्मा जी कि मैं ने आपके साथ बहुत बुरा बर्ताव किया लेकिन आप सिर्फ एक बार मुझे माफ़ कर दो। मैं आपको आगे से शिकायत का कभी मौका नहीं दूंगी।


अम्मा जी को तो ये सब सुनकर बड़ी देर तक यकीन ही नहीं आया और जब आया तो उन्होंने रेखा को अपने गले लगा लिया।

काश जैसे रेखा की आँखें समय रहते खुल गई, वैसे ही बाकी सब की खुल जाएं। बड़े बुजुर्ग काम करें या ना करें, उनका आशीर्वाद हमारे साथ होना बहुत ज़रूरी है।



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