आभासी रिश्तें
आभासी रिश्तें
सोशल मीडिया में एक्टिव रहने वाली इस जनरेशन की मैं एक मॉडर्न लड़की हुँ।मुझे मेरे फेसबुक फ्रेंड्स के ढेरों रिश्तों पर बहुत नाज़ था।आये दिन मुझे मेरी post पर खूब सारे comments मिलते थे तो कभी ढेरों likes !
लेकिन अनुभवों से जाना की face book के रिश्तों की face value बहुत कम होती है।
फ़ोन बुक के रिश्तें भी मशीनी और बेहद कागज़ी होते है।कोई काम हो तब लोग कॉल करते है।मतलब वाली call और मतलब वाले messages !और तो और messages भी बिलकुल खोखले से, copy- paste की दुनिया से आये हुए! बस पढ लो,या रख लो।
चाहो तो delete करके फेंक दो बिना किसी guilt के और बिना कोई feelings के।
E-mail के रिश्तें तो बिलकुल बेमेल लगते है।बिल्कुल official ! बहुत हुआ तो त्योहारों पर wish और greeting भेज दो और बस काम ख़त्म।
आमने सामने बैठकर चाय की चुस्कियों के साथ एकदूसरे की आँखों में झाँकते हुए जो बातें होती है उनकी गहरायी और गरमाहट इन खोखले, बेमेल और काग़जी रिश्तों में आ सकती है भला?