Vikrant Kumar

Others

4.8  

Vikrant Kumar

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045

045

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कहानी का शीर्षक थोड़ा हटके है लेकिन इससे जुड़ी यादें भी जरा हटके है। समय,स्थान और क्षेत्र के अनुसार वस्तु, परम्परा अथवा चलन में भी विविधता पाई जाती है। 

045 भी एक ऐसी ही चलन की कहानी है जो एक जमाने के लोगों की शान और पहचान से जुड़ी है।मैं बात कर रहा हूँ रयनॉल्ड 045 पेन की।


90 के दशक के आसपास जब पेन के ज्यादा विकल्प उपस्थित नहीं थे।उस समय ज़्यादातर जेब की शान 045 ही हुआ करता था। मेरी माध्यमिक परीक्षा में कलम का सिपाही 045 ही था।शानदार लुक व फाइन ग्रिप के साथ सुंदर नीली स्याही, लिखने वाले की लिखावट को चार चाँद लगा देती। अभ्यास पुस्तिका में लिखे शब्द, आसमान में चमकते सितारे से प्रतीत होते थे। अपनी ही लिखावट को बार बार देखने का मन करता था। स्याही की अलग ही महक से मन असीम आनन्दित हो जाता था। जब नया 045 पेन ले कर आते थे तब तो आनन्द की सीमा नहीं रहती थी।कई दिनों तक गर्व की अनुभूति होती रहती थी। उस जमाने में विद्यार्थी की सम्पन्नता की पहचान उसके जेब में टँगे लाल नीले 045 पेन से हो जाती थी। 

समय के साथ बदलाव प्रकृति का नियम है। 15 वर्षों तक लोगों के मनों पर एकछत्र राज करने वाला 045 धीरे धीरे केवल चाहने वालो तक ही सिमट कर रह गया। नई पीढ़ी मार्केटिंग और एडवरटाइजिंग की भेंट चढ़ गई। परन्तु उस जमाने के कई लोग आज भी उसी शिद्दत से 045 के दीवाने है जब हर किसी की पसन्द केवल 045 ही हुआ करता था।

पिछले दिनों विद्यालय के कार्य से सार्वजनिक निर्माण विभाग में जाना हुआ। वहाँ के सहायक अभियंता श्री ओमप्रकाश शर्मा को 045 से लिखता देख कर मन में अलग सी खुशी का संचार हुआ। उनसे बात करने पर उन्होंने बताया कि 1986- 87 से रयनॉल्ड 045 उनका साथी है। वे बताते है कि आज इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी 045 की वही क्वालिटी है। न तो इसकी बनावट में कोई बदलाव हुआ और न ही इसकी स्याही में कोई बदलाव। उनको इस बात से बड़ा सुकून है कि इसकी स्याही में अन्य पेन की तरह चिकनाहट नहीं है। 045 के साथ वे आज भी उसी आनंद की अनुभति करते है जो उन्होंने शुरुआती दिनों में की थी।

जमाने बदल गए लेकिन नहीं बदले कुछ लोग जो 045 के दीवाने है और नहीं बदला कलम का सिपाही 045.


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