कोई पति कैसे अपनी जीवनसंगिनी को किसी और को सौंप सकता है।
नारी समाज की दर्पण है ।राष्ट्र की गरिमा ,प्रतिष्ठा ,और समृद्धि नारी से ही है ।
मालनी ने कहा तुम बच्चों के पिता के रूप में घर में रह सकते हो... मेरे पति के रूप में नही
कैसे कपड़े पहन रखे हैं। पति तो छोड़कर चला गया और उस पर से यह श्रृंगार।
तुम हो अनुसुइया सीता सी सती, अहंकार का परित्याग तुम ही संधि प्रत्यर्पण हो ....(१)
चौथी संतान भी बेटी, हे ईश्वर, इससे अच्छा तो बेऔलाद रखता मुझे !"