घर की मालकिन बाहर खड़ी थी कारण सारी महिलाएँ जा रही थीं
मैं भी हूँ तुम्हारा बच्चा। गुल्लक मैंने भी तोड़ी, उसको भी लिपटा लिया अपनी ममता की छाँ
इस भिड़ मे पूरे डिब्बे में एक बच्चे की किलकारी ज़ोर ज़ोर से घूम रही थी, सारे यात्रीयों का उस बच्चे के रोने पर ध्यान केंद...
रेखा जी के पिता सरकारी विद्यालय में हेड मास्टर थे, बच्चों को हिंदी सिखाते थे। घर में सब कुछ सही ही चल रहा था।
मिठाई के डब्बों पर वह टकटकी लगाए बैठे था। समारोह में नेता जी देशहित और। ....
जब घर लेकर आई उस बच्चे को तो घर के लोगो ने उसे ही बाहर का ही रास्ता दिखा दिया