दुःख की टोकरी
दुःख की टोकरी
जिन्दगी ने भी क्या खूब मजाक किया था यशोदा के साथ सर्वप्रथम प्रेम विवाह के कारण माँ –बाप का साथ छूटा और उसे क्या पता था कि जिस भूपी के लिए वह सारे जग से लड़ने के लिए तैयार रहती थी, उसी भूपी के गलत व्यवहार के कारण उसे एक दिन छोड़ना पड़ेगा। उस दिन को आज भी यशोदा याद करती है जब उसे मालूम हुआ था कि भूपी गलत संगती में है उसने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन धनी बनने की चाहत भूपी को अंधा हीं नहीं मानसिक लाचार कर चुका था लेकिन यशोदा ने स्पष्ट कह दिया था वह गरीबी में जीवन व्यतीत कर सकती है लेकिन इन पैसों के साथ गुजारा करना नामुमकिन है उसी दिन से दोनों का रास्ता अलग हो गया।
अब यशोदा और उसके जीने का सहारा उसकी सब्जियों से भरी टोकरी वह मेहनत करके बहुत खुश थी, रोज बड़ी सब्जी मंडी से सब्जी लेना और घर –घर बेचते हुए फिर छोटी मंडी के व्यापारियों से थोक में सब्जी खरीद कर दिन भर वही सब्जी बेचना यह दिनचर्या के बीच वह कभी कभी अकेलेपन के कारण उदास हो जाती थी।
एक दिन अपने धुन में यशोदा सब्जी बेच रही थी तभी ....
यशोदा –आइए मेम साहब ताज़ी -ताज़ी कटहल है ले लीजिए ऐसी ताज़ी कटहल यहाँ कहीं नहीं मिलेगी।
मेंम साहब – चल तौल दे ,आज जब तुम गली से निकली तो मुझे पता नहीं चला, वहीँ सब्जी ले लेती तो इतनी दूर आनी नहीं पड़ती।
यशोदा –ठीक किया ना मेम साहब ...अभी यशोदा की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि
मेम साहब –अरे यह बच्चा तेरा है कितना प्यारा है कभी नहीं बताया
यशोदा –घबराते हुए कौन- कौन, नहीं -नहीं
मेम साहब –जब से आई हूँ तब से देख रही हूँ यह तुम्हारी साड़ी को पकड़ा हुआ तुम्हारे बगल में बैठा है तू बोलती है कि ..तब तक दूसरी ग्राहक
यशोदा -आइए आइए कितनी दे दूँ।
मेम साहब –अरे तेरा बच्चा नहीं है तो पुलिस के पास जा
दूसरी ग्राहक –क्या यह इसका बच्चा नहीं है ? लेकिन मैनें तो सुबह भी इसको तुम्हारे पीछे पीछे आते देखा था, क्या तुम्हारे मोहल्ले का तो नहीं है ?
यशोदा- नहीं - नहीं साहब
मेम साहब -जा नहीं तो बुरी तरह से फंसेगी
यशोदा –क्या नाम है? बेटा- खाना ,यशोदा भूख लगी है अपनी पोटली से रोटी अचार निकाल उसे हाथों से मसल कर बच्चे को खिलाया पानी पिलाकर पुलिस स्टेशन पहुँच गई।
यशोदा –साहब- साहब हांफ़ते हुए
साहब –क्या हुआ साँस तो ले लो फिर बताओ
यशोदा –नहीं साहब, यह बच्चा ना जाने कब से मेरे पीछे है सारी घटना पुलिस को बता दी।
साहब –ऐसा कहाँ होता है, ठीक है, छोड़ दे यहीं
यशोदा – बड़े साहब कहाँ हैं ?
साहब - क्या बात है ?
यशोदा –साहब बिन माँ का बच्चा है, देखिए ना इतना कम समय में मुझसे कितना घुलमिल गया है, यहाँ कैसे रहेगा। मैं रोज लेकर यहाँ आ जाऊँगी।
साहब – यह संभव नहीं है नाम क्या है बेटा ?
बच्चा –खाना
साहब –लो बिस्किट खाओ।
बच्चा –खाना
साहब –ओ कान्हा
यशोदा की बहुत विनती पर साहब मान गए लेकिन हिदायत दी कि रोज यहाँ बच्चे को लेकर आ जाना।
मेहनती यशोदा का काम तो बढ़ गया लेकिन यशोदा को फिक्र नहीं थी वह बहुत खुश थी अपने कान्हा के साथ देखते देखते छह महिना बीत गया कोई पता नहीं चला, यशोदा को कान्हा मिल गया था लेकिन वक्त ने फिर एकबार यशोदा को पीछे धकेल दिया कान्हा के माता-पिता मिल गए। यशोदा अपने कान्हा को जाता देख रोती रही लेकिन यह पीड़ा उसके जीवन के सभी कष्टों से बड़ा था। अब कभी कान्हा के कपड़ों को अपने कलेजे से लगाकर तो कभी फोन पर बातें कर जी बहलाती है। आज फिर एकबार यशोदा और कान्हा अलग हो गए।