सुविचार ही युद्धों में भी विजय की पताका फहरवाती है। सुविचार ही युद्धों में भी विजय की पताका फहरवाती है।
ऐसी कविता बन जाऊँ मैं ऐसी कविता बन जाऊँ। ऐसी कविता बन जाऊँ मैं ऐसी कविता बन जाऊँ।
फिर क्यों लोग इसे समझने को तैयार नहीं है। फिर क्यों लोग इसे समझने को तैयार नहीं है।
यह काम निपटा लेते हैं अकेले ही रिश्ते निभा लेते हैं। यह काम निपटा लेते हैं अकेले ही रिश्ते निभा लेते हैं।
होड़ मची है क्या पाने की, घूमे...छल धरे….चाव से, होड़ मची है क्या पाने की, घूमे...छल धरे….चाव से,
अनमोल है मां वरदान तुम्हारा, मूरख मन का, तू ही है सहारा। अनमोल है मां वरदान तुम्हारा, मूरख मन का, तू ही है सहारा।