उठा लूँगी हौले से तुम्हारी प्रीत को, ऊँगली पर उठाता है जैसे कोई तितली को... उठा लूँगी हौले से तुम्हारी प्रीत को, ऊँगली पर उठाता है जैसे कोई तितली को...
और मैं उन पलों में तुम्हारे सानिध्य के लिए सुलगती रहती हूँ ! और मैं उन पलों में तुम्हारे सानिध्य के लिए सुलगती रहती हूँ !
अपनी तहज़ीब, मर्यादा लोग भूल गये है, ऐसे कोई अपने शरीर के कपड़े बदलता है, जैसे अपनी तहज़ीब, मर्यादा लोग भूल गये है, ऐसे कोई अपने शरीर के कपड़े बदलता है, जैसे