खामोशियाँ बोलती है| डर बिगड़ "माँ" तुम कितनी झूठ बोलती हो काम सुबह औरत ग़लती धमकी थकती समाज दहेज हिंदी कविता hindikavita सामाजिक सरोकार बोलती बंद सड़क हिन्दीकविता सड़कें भी बोलती हैं सड़क और ज़िन्दगी

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