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Shailaja Bhattad

Others

2.5  

Shailaja Bhattad

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यथार्थ की खोज

यथार्थ की खोज

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आँखों देखी है , कानों सुनी है इसलिए विश्वास है

खुद किया है तो आत्मविश्वास है

पर अंधविश्वास !

सिर्फ सुना है इसीलिए विश्वास है

पूरा नहीं न ! तात्विक शक्ति से परे है

पर क्या ? पूरा विश्वास

तंत्र मंत्र यंत्र कोरा अंधविश्वास है

पर क्यों देखा नहीं इसलिए

देखा भी है,पर देखा वो सही है

सुनाना है अतीत के मुग्ध कारी स्वप्न का

जिसे देखा था मेरे देश के पुरखों ने ,पुरखों के पुरखों ने पुराकाल में

मानव तो है स्वप्नजीवी ,

तलाशता है स्वप्न में यथार्थ के संकेत

मौजूद है ताड़पत्र जिनमें वर्णित है स्वप्न

हमारे हाथ में है स्वप्न संकेत

है संकेतक ढूँढते फिरते है संचेतक

मिलता नहीं संचेतक

देखा है आँखों के सामने संकेतक का खेल

पर नापी नहीं सच्चाई ,किस मापक की मदद से

चाहिए विचारमंथन ,चाहिए सूत्रधार पर स्त्रोत क्या है

बदल गए हैं हम सब ,आ गए हैं पुराकालीन से बहुत आगे

जमाना है डुप्लीकेट का ,विचार भी डुप्लीकेट ,मानसिकता भी डुप्लीकेट

सो तंत्र मंत्र का वर्तमान स्वरूप भी डुप्लीकेट

फिर मौजूद है संचेतक भी डुप्लीकेट

क्या है यथार्थ ढूंढें कहाँ

निकलकर निराशाओं की आंधी से जो ठहराव आया है

क्या वो गतिमान नहीं। बीज की शक्ति से बना पौधा।

पर जड़ें क्यों हिली आंधी से ,

जड़ों की कोर मिलती है कही धरती में दबी ज्ञान की गहराई में

पहुँचती नहीं वहाँ तक विश्वास की किरण

पहुँचे कैसे मार्ग ही नहीं मिलता

मार्ग भी है सच्चाई भी ,लगन चाहिए शाॅर्टकट नहीं

गवाह है इतिहास ,खोया ज्यादा पाया कम है

क्योंकि शाॅर्टकट फिर भी शाॅर्टकट है


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