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MANISHA JHA

Others

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MANISHA JHA

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यादें जन्नत की

यादें जन्नत की

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याद है तुमको 

कश्मीर की सर्दी और ढेरों फ़ौजी वर्दी

वो बर्फीला मौसम,निर्मम ठण्ड का आलम

कहवा का कप, साथ की गप्प-शप्प

बस यही राहत देती थी।

फेरन का पहनावा और कश्मीरी दोस्तों का बुलावा

इतने प्यार और तहजीब से की गयी मेहमानवाज़ी

इतना कुछ परोसा था मेजबानों ने

मोहब्बत और आँखों से छलकता स्नेह

उनके अल्फाजों से टपकता हुआ नेह

आज भी ताज़ा है।

ये यादों के एल्बम पलटने की जरूरत नहीं होती

ये तो मानस पटल के पहले पन्ने पर ही अंकित हो गयी है।

पहलगांव वाले रास्ते और गुलमर्ग के बर्फ 

हाउस बोट का शिकारा और डल झील का किनारा

आज भी बुलाती है.....आऊँगी जरूर

बादाम, अखरोट और सेब के दरख़्त

आज भी याद आते हैं, जाऊँगी जरूर।

वो सिक्स को सीकीस बोलना, उनकी भाषा बिल्कुल ना समझना

फ़िर भी इतने साल वहां बिताना

ढेरों समीर और शकील से मिलना 

यादों का पिटारा,और मोटे-मोटे स्वेटर का बक्सा 

जब खुलता है, पुराने वक्त का आयना सामने लाता है 

जन्नत की वादियों की बहुत याद दिलाता है।



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