वसंतोत्सव
वसंतोत्सव
वसंत ऋतु का यह धराधाम
भारत भूखण्ड स्वागत करता है
शिव भार्या प्रीये गंगा
जटा से कल-कल-नाद कर बहती है
झरनों की वक्र धारा बन इठला कर गिरती चलती हैं
पठारों पर दुस्तर पथ गह लम्बी यात्रा यह करती है
गंगा सागर से मिल कपिल मुनि आश्रम तक जाती है
उत्तरांचल से चल पश्चिम तक भूमि सिंचित करती है
मकर संक्रांति झेल गंगा उष्णा का स्वागत करती है
स्तब्ध उर्वरक शक्ति पुनर्सृजित हो कृषकों को भाई है
हरित क्रांति हर वर्ष आ समृद्धि की ओर बढ़ती है
वसंत ऋतु सचमुच सुदृढ अवलम्बन प्रदान करती है
