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Himanshu Sharma

Others

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Himanshu Sharma

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वसंत-परिदृश्य

वसंत-परिदृश्य

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बहार के आने से, ये सूना बाग़ हुआ गुलज़ार,

पाखी की, ये कलरव सुनी, भंवरों की गुन्जार!

भंवरों की गुंजार सुन के ये पुष्प भी डोल पड़े,

कब से मूक थे ये दरख़्त अब यूँ ही बोल पड़े!

वसंतागमन से हुआ सभी में, ऊर्जा का संचार,

पाखी की, ये कलरव सुनी, भंवरों की गुन्जार!

तरह-तरह की ख़ुश्बू लेकर पवन चलती जाए,

मन में ये नवोत्साह यूँ देकर पवन चलती जाए!

बसंत की आड़ ले कर रहा मन पे काम प्रहार,

पाखी की, ये कलरव सुनी, भंवरों की गुन्जार!

माधुर्य सौंदर्य की, प्रकृति ने लगाई ये प्रदर्शनी,

लावण्यता लिए मन-भावन ऋतू ये मन-हर्षिनी!

सौंदर्य बाग़ से चुनने आया है, फूल हर-सिंगार,

पाखी की, ये कलरव सुनी, भंवरों की गुन्जार!


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