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Bhavna Thaker

Others

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Bhavna Thaker

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वो उम्र बाँटना चाहती है

वो उम्र बाँटना चाहती है

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दर्द के फूलों से लदे

उम्मीदों के ज़ख़्म कुरेदना चाहती है,

वक्त की पलकों पर सोए सपने जगाना चाहती है ,

खामोश पड़ी गज़ल को दर्द की तान पर दोहराना चाहती है,

पर एक भी सुर ज़िंदगी के तानपूरे से बजती नहीं..

दिन गुज़रता नहीं रातें कटती नहीं,

है कोई दामन बिछाने वाला ?

वो उम्र बाँटना चाहती है।

ना मिला फ़लक का टुकड़ा ना उड़ने को परवाज़, 

ज़रा सी धूप एक अधखुली खिड़की से झाँकती,

बदकिस्मती के कोने के तम से तिलमिलाती 

सूने गलियारे से सरक जाती है,

ज़िंदगी का ठंड़ापन ओर निर्ममता के आगे उसके हर जतन हारे।

सजल नैंन, सस्मित लब लिए ज़िंदा तो है

अवसाद की छाया लकीरों पर छाई है,

अब सुख का सरमाया कहाँ ढूँढें...?

पंख कटी चिड़ीया छिटक नहीं सकती 

एक चिड़े ने मांग भर दी है चुटकी भर रक्त वर्णित रंग से ।

चंद काले मनके की एक डोर से बँधी पगली निभा रही है रस्म 

माँ ने कहा था मान रखना, 

जहाँ डोली उतरी वहीं से अर्थी पर चढ़ना।।



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