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सोनी गुप्ता

Others

4.7  

सोनी गुप्ता

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वो फैसला तुम्हारा

वो फैसला तुम्हारा

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तुम हमसे दूर गए ना जाने क्यों वो फैसला भी तुम्हारा था, 

हाँ थी तुम्हें नाराजगी हमसे पर वो फैसला भी तुम्हारा था,


अनकही और अनसुलझी ख्वाहिशों के पीछे मैं भागता रहा, 

मेरी सभी अनसुलझी ख्वाहिशों का सागर इतना गहरा था


हम दोनों को एक ना होने दिया क्योंकि खुदगर्ज जमाना था,

मोह के उन धागों में बंधकर अश्कों का दामन भीगता रहा, 


मन ठगता रहा और वो हमारा प्रेम ना तेरा रहा ना मेरा रहा,

खैर हम तो न कर सके मोहब्बत यह फैसला भी तुम्हारा था, 


अब तो इस विरह की अग्नि में दर्द ही हमारा हमदर्द बन गया, 

जमाना बीत गया और वो बीता हुआ फसाना भी तुम्हारा था,


तुम नहीं पास फिर भी सब से छिपकर ढूंढती थी तुम्हें निगाहें, 

याद बनकर जो आए जो ख्यालों में वो ख्याल भी तुम्हारा था, 


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