वो करारी जलेबियाँ
वो करारी जलेबियाँ
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वो करारी जलेबियाँ उतारी थी हलवाई ने,
चाशनी में डुबाई थी हलवाई ने,
दौड़े थे हम पापा को बुलाने,
एक बचकानी ज़िद से पाव भर
रसीली जलेबियाँ पैक कराने,
उन्होंने भी एक बेमन सी ना नुकूर के बाद,
पाओ की बजाय ५०० ग्राम कराईं थी पैक ,
मम्मी के नाम से खुद भी
जी भर के खाने की थी उनकी मंशा
कह कर ये 'की क्यों न बंधवा लें
चार कचौड़ियां भी साथ'
कर देते थे उस दिन
शाम के नाश्ते को कुछ मज़ेदार।