वो काली लड़की
वो काली लड़की
वो काली लड़की
अक्सर उदास रहती है,
अंदर ही अंदर
खुद में घुटती रहती है,
अपनों के तानों से
खुद को बारंबार
तिरस्कृत किए जाने से......
उन शब्दों से
जो हरदम उसे
मनहूसियत बताते हैं,
इंसानों की भीड़ में
इंसान नहीं बताते हैं,
वो रोकती है हर वक्त
खुद ही
अपने अंदर के उबाल को,
बांधे उन्हें चलती है
ताउम्र अपने किरदार में,
ईश्वर ने उसे
रूप दिया
साथ सादगी और कोमल मन
सुंदर सुंदर भाव दिए
भर दिया उसमें अपना रंग,
उसने भी बड़े जतन से संजोए रखा
इस रंग को
बचपन से यौवन तक
उम्रभर के तानों के संग.......
वो पूछती है सबसे
कैसे वो रोके है हरदम
आंसुओं को खुद के
दूसरों से अस्वीकृत होने पर,
कैसे अनसुना कर दे
उन उल्हानों को
जो उसके कानों में
देर सवेर सुनाई पड़ते हैं,
उसे उसके काले रंग पर
हरदम टोकते रहते हैं,
वो कई उपनामों
"काली","ब्लैक ब्यूटी"
"डस्की","चुड़ैल" से पुकारी जाती है,
पर बेचारी खुद को
इस लाचरगी में भी खुद से
बांधे रखती है,
काली है, काली है, काली है
शब्द सुन सुनकर
अब वो झेंपने लगी है,
ये जो टीस
उसे सालों साल से चुभ रही है
मजबूत मन होने के बावजूद
उसके अस्तित्व को
धीरे धीरे तोड़ रही है,
वो खुद को रोज जोड़ती है
हर बार टूटने पर
मगर उसके जहन में अब ये निशान
गहरे बहुत गहरे होते जाते हैं,
आंसू उसके ढलकते हैं हरदम
कोसती है वो खुद को
और उस संकीर्ण सोच को,
लगाती है एक प्रश्न चिन्ह
उनकी उपेक्षाओं पर
उनके रंगभेदी तानों पर
पूछती है उनसे
क्या काला रंग
और
काला होना
सच में एक अभिशाप है..?????