*वो अनकहा सच*
*वो अनकहा सच*
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वो अनकहा सच,
जो कभी तुमने,
जानना ही नही चाहा,
सुनकर भी अनसुना सा,
अपने अंतर्मन को भ्रम में,
पालकर, मुख मोड़ता,
रिश्ते - नाते, अलगाव की,
सीढ़ियां चढ़कर
अनजानी दुनियां को
खुशी मानकर,
दुनियादारी के,
मोहजाल में फंस,
छटपटाता हुआ,
खीझता हुआ,
आखिरकार निकल पड़ता है,
अपने सच की तलाश में,
पर फिर भी सुनना भूल जाता है,
वो सच जो अंतर्मन के किसी,
कोने में दफ़न है,
वो अनकहा सच जो उसने,
कभी सुनने से इंकार कर दिया था,
रीत गया जब मन, बैचेनी बढ़ गईं,
फिर उठे उसके कदम,
अनकहे सच की तरफ,
टटोला अन्तर्मन,
और मिल गया,
प्रभु स्मरण.....
एक अनकहा सच! !