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manisha sinha

Others

4.9  

manisha sinha

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वक़्त

वक़्त

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वक़्त के पन्नों को पलटने की

आज, फ़ुरसत सी हुई है।

आज फिर से उन लम्हों को

जीने की, हसरत सी हुई है।


वक़्त की स्याही ने जो

लिखीं थी दास्तान ,

आज फिर से उन्हें पढ़ने की

ख्वाहिश सी हुई है।


लेकिन मिट सी गई है स्याही

या, नज़र कमज़ोर हो गई।

लाख कोशिश की मगर

वह दुहराई ना गई।


ख्वाब सा टूटा था जैसे

मन सचेत हो गया।

भूत और भविष्य के

पिंजड़े से उड़ गया।


ठहाका लगाता हुआ, दिल ने

जोरों से कही तब

जो है वह आज है

बस यही ज़िंदगी है।


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