विधवा
विधवा
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चूड़ियाँ तोड़ दी
सिंदूर पोंछ दिया,
रंगीन पोशाक छोड़कर
सफेद लिबास पहन लिया,
अब हर वसंत
पतझड़ ही लाएगा,
होली का रंग भी
फीका लगने लगेगा,
छाया रहेगा अँधेरा हर दम
चाहे हो अब दीवाली,
पूजा हो या त्योहार
उसके किस काम की ?
क़यामत तक अब सिर्फ
ग़म ही ग़म हैं ,
मानना खोखली रिवाजों को
क्या हमारी शान है ?
खत्म सा लगने लगी है
अब उसकी यह जिंदगी,
क्या करना गुनाह है
शुरुआत नई जिंदगी की ??