विचरण मन का
विचरण मन का
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क्यूँ रोक रहा है वक़्त मेरा पास आने को अब तेरे
रूह हुई तेरी बस रहा जिस्म मेरा और बचा क्या है
टकटकी लगायी निहार रही हैं कबसे ये आंखें तुझे
क्यूँ मौन है तू खुदा के बन्दे बोल तेरी रजा क्या है
आसमां तक उड़ने वाले जज़्बे में तू कहीं अटकाये मुझे
मन में यह विचरण कैसा इश्क़ की चली ये हवा क्या है
सुदृढ़ विचार सुनहरी फ़िज़ाएँ रोक न पाए कोई पग मेरे
दूर कहीं से दृश्य मनोहर प्रतीत होता ये हर पल क्या है
