उम्र के पड़ाव
उम्र के पड़ाव
बचपन का गुड्डा यूं आ गया
बचपन को तरोताज़ा कर गया
यादें झंझोड़ते-झंझोड़ते
चुलबुलाहटों से शोख कर गया।
बचपन को फिर से जी लें
मन की गांठें मिल कर खोलें
अज्ञानता भी कभी परमानन्द है
इस भोलेपन के अमृत को पी लें।
कौन सी तितली कहां से आई
किस फूल के रस को भाई
रंग-बिरंगे रंगों का सजा के मेला
कौन सी ख़ुशबू संग लेती लाई।
कौन सी बेल कहां तक लिपटी
कौन सी नई शाख किसको चिपटी
किस पेड़ पर क्या फल आया
किस की बात कहां पर सिमटी।
कौन सी चीं-चीं कहां से आई
किस के प्यार का तोहफा लाई
कौन सा पक्षी कहां पे चहका
कोयल की कूक क्यों इतनी भाई।
चल बचपन को फिर से जी लें
भोलेपन का अमृत फिर से पी लें
बढ़ती उम्र के हर मोड़-पड़ाव पर
तजुर्बों से फिर से कुछ सीख ही लें।
