उलझे रिश्ते
उलझे रिश्ते
जीवन की गुत्थी सुलझाने के लिए
उलझे रिश्ते सवाँरने के लिए
शुरू से उधेड़ दिया सब
तब पाया
मेरी दिवानगी
मेरी मौहब्बत
का ही था कसूर
जो दुनियादारी
भूला प्यार कर बैठी ।
अपने ही पिया को इस
धरा पर खुदा समझ बैठी ।
उस की बिरह में
दिवानी हो गल्लियों में भटकती
अपनी सुध- बुध खो बैठी ।
बस ! ये रास न आया दुनिया को
इसलिए मुझे ही सज़ा दे बैठे
मुझे ही मुझ से छीन बैठे ।
मेरा प्यार, मेरी दिवानगी,मेरी मौहब्बत
सब की बलि दे बैठे
आज मैं रिक्त हो बैठी ।
वो मेरे साथ होते हुए भी
मेरे साथ नहीं
मैं ज़िंदा होते हुए भी ज़िंदा नहीं
वक्त ने अपना कहर ढाया
सब उधेड़ के रख दिया ।
जो अब बुना ही नहीं जाता
बस अति बुरी है होती
ये ही समझ है आया ।