उड़ान एक परवाज़ की
उड़ान एक परवाज़ की
थोड़ी देर तो उड़ने का मज़ा लेने दो,
बाहें फैलाए नीलाम्बर खड़ा है,उसकी आगोश में कुछ निफ्राम पल जीने दो.
जो बीत गया उसका पछतावा त्याग के फुर्सत के पल जीने दो.
अब ना सोचूंगी कि क्या खोया और क्या पाया,
भाग्य में क्या क्यों कैसे ऐसा होना था लिखा.
ख्वाहिश जो मेरी है,ज़रूरी तो नहीं कि वही ज़िन्दगी के लिए सही है,
जब साथ हों परमात्मा का साथ, किसी बात की फ़िक्र ही नहीं है.
थोड़ी देर तो उड़ने का मज़ा लेने दो,
झड़ी सी लग जाती है नाकामियों और बर्बादियों के किस्सों की,
आज फिर से बीते लम्हों का ज़िक्र कर के मलाल ह्रदय का और ना बढ़ाओ.
अरे यें क्या!तुम भी भावुक हों रहे हो,आखों से अश्रुधारा बहा रहे हों,
कुछ सब्र तुम भी कर लो, कुछ लम्हें ठहर कर ज़िन्दगी का लुत्फ़ उठाओ,
क्यों इतने व्याकुल, इतने बेसब्र,इतने विचलित होते जा रहे हो?
थोड़ी देर तो उड़ने का मज़ा खुद भी ले लो.
मंज़िल पर पहुँचने की क्यों है जल्दबाजी,
देखो कितना सुहाना सफर है,कुछ लुत्फ़ उठा लो ना जी.
अभी सुलग रही है अरमानों की मशाल,चिंगारी अभी भी बाकी है,
खुल के जी लो खुद भी, खुल के जीने दो हमें भी
अभी तो उड़ना शुरू ही किया है,अभी परवाज़ को ना रोको- टोको
पँख फैला के खुली हवा में कुछ देर तो अब श्वास लेने दो
थोड़ी देर तो उड़ने का मज़ा अब हमें भी लेने दो...