उदास अंधेरी रात
उदास अंधेरी रात
उस अंधेरी रात ने बात की थी साथ में,
बोली मुझसे रात वो बात बिना बात में,
कि मुझको भी निहार ले मन में यूं उतार ले,
मुझको भी भिगो तू अपने शब्दो की बरसात में।
उस अधेरी रात ने बात की थी साथ में
मुझमें भी थी तृष्णा कुछ लफ़्जो के मिठास की,
उसमें खोया खुद को तो तलाश मैने खास की,
कि रात वो उदास थी मन मे उसके प्यास थी,
पास न था चाँद उसको चाँदनी की आस थी।
उस अंधेरी रात ने बात की थी साथ में
मै बोली फिर उस रात को तू मान मेरी बात को,
यूं न तू उदास हो संभाल अपने आप को,
चाँद भी था थक गया तुझसे ही लिपट गया,
एहसास कर एहसास को वो तुझमें ही सिमट गया।
उस अधेरी रात ने बात की थी साथ में