ठौर-ठिकाने
ठौर-ठिकाने
खुले आसमां में पंख फैलाता
हवा की लहरों संग लहराता
तनिक ठहर कर
यह पंछी किसका संदेसा लाता?
उमंग में उड़ता-उड़ता
इंद्रधनुषी झूले से उतरता
बेफिक्र तरंगों संग
किन वादियों की ख़ैर-ख़बर लाता?
खुली वादियों में भाता-भाता
अपनी धुन में सुरीला गान गाता
प्यार-स्नेह क़रीब बैठ कर
यह पंछी कहां-कहां का संदेस सुनाता?
जादूगर जैसे जादू के लिए पालता
जो जादुई नगरी में उड़ाता
जादू का पंछी सीख लेकर
जगह-जगह जादू बिखराता।
हाल-चाल जानने को आता
ख़ैर-ख़बर लेता-जाता
आते-जाते उड़ते-बैठते
सतरंगी रंगों की छटा सुनाता।
मीलों-मीलों उड़ता जाए
मज़े-मज़े में पंख फैलाए
प्रतीक्षारत को खुश रखने
ठौर-ठिकाने लौटकर आए।
