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Rachna Vinod

Others

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Rachna Vinod

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ठौर-ठिकाने

ठौर-ठिकाने

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खुले आसमां में पंख फैलाता

हवा की लहरों संग लहराता

तनिक ठहर कर

यह पंछी किसका संदेसा लाता?


उमंग में उड़ता-उड़ता

इंद्रधनुषी झूले से उतरता

बेफिक्र तरंगों संग

किन वादियों की ख़ैर-ख़बर लाता?


खुली वादियों में भाता-भाता

अपनी धुन में सुरीला गान गाता

प्यार-स्नेह क़रीब बैठ कर

यह पंछी कहां-कहां का संदेस सुनाता?


जादूगर जैसे जादू के लिए पालता

जो जादुई नगरी में उड़ाता

जादू का पंछी सीख लेकर

जगह-जगह जादू बिखराता।


हाल-चाल जानने को आता

ख़ैर-ख़बर लेता-जाता

आते-जाते उड़ते-बैठते

सतरंगी रंगों की छटा सुनाता।


मीलों-मीलों उड़ता जाए

मज़े-मज़े में पंख फैलाए

प्रतीक्षारत को खुश रखने

ठौर-ठिकाने लौटकर आए।

        


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