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S Ram Verma

Others

3  

S Ram Verma

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तरंगित मौन !

तरंगित मौन !

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जब जब दूर बैठा मैं 

अपनी बंद आँखों से 

भी निहारता हूँ तुम्हें 

तभी हमारे बीच का 

मौन शांत प्रकृति की 

ध्वनियों की तरह ही 

तरंगित हो उठता है 


विचलित नहीं करता  

वो बल्कि उस मौन को

वो मुखर कर देता है 

और शब्दों से भरा वो 

आकाश मुझे घेर लेता है 

जो तुम्हारे होने की ही 

तो अनुभूति देता है 

क्योंकि उस आकाश में 

भरा जल तुम्हारे ही 

अनुराग का प्रतीक तो है !  

 



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