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मिली साहा

Others

4.8  

मिली साहा

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तेरे शहर में

तेरे शहर में

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जिससे लिखी गई इबारत-ए- इश्क़, बेजान थी वो स्याही ही,

इत्तेफ़ाकन मुलाकातों को समझ बैठे मुलाकात मोहब्बत की,


मुकम्मल ना मोहब्बत सबकी, कुछ ख़्वाब अधूरे रह जाते हैं,

कुछ फना हो जाते कुछ दर्द-ए-इश्क़ को ज़िंदगी मान लेते हैं,


हमने भी अपनी मुसल्लम ज़िंदगी कर दी थी किसी के नाम,

ख़्वाब में भी न सोचा था ऐसा होगा मोहब्बत का इख़्तिमाम,


आना तो नहीं चाहते तेरे शहर में पर ज़िन्दगी ही खींच लाई,

नसीब में भी लिखा है शायद वक्त का सितम और ये तन्हाई,


तेरे शहर में अब हवाओं का रुख बदला-बदला सा लगता है,

न जाने क्यों खुद की ही पहचान को, ये दिल यहांँ तरसता है,


जहांँ मोहब्बत की खुशबू थी बेगानी सी लगती वही गलियांँ,

प्यार से बनी ख़्वाबों की बगिया में, देखो मुरझा गई कलियांँ,


खो बैठे हैं हिम्मत, बेजान सा महसूस करते तेरे इस शहर में,

मुस्कुराहट भी कहांँ आती इन लबों पर, दर्द के इस कहर में,


खुदा से करते यही दुआ न हो हमारा तुमसे आमना-सामना,

कोई सवाल पूछो उससे पहले तो, बेहतर हमारा लौट जाना।



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